
डोनाल्ड ट्रम्प की नोबेल पुरस्कार की चाहत ने अमेरिका की विदेश नीति को असमंजस में डाल दिया है। जानिए कैसे भारत इस वैश्विक राजनीति में एक स्थिर शक्ति बनकर उभरा है।
डोनाल्ड ट्रम्प, जो कभी “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” का नारा लगाकर राष्ट्रपति बने थे, आज एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहाँ उनके पास सब कुछ है—धन, शोहरत और राजनीतिक शक्ति। लेकिन उम्र के इस पड़ाव पर ट्रम्प एक और चीज़ के पीछे दौड़ रहे हैं वो है— नोबेल शांति पुरस्कार।
और यही दौड़ अब अमेरिका की वैश्विक छवि और विदेश नीति के लिए एक मुसीबत बन चुकी है।
हाल के समय में जब ईरान ने अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर बमबारी की, तब ट्रम्प का रुख चौंकाने वाला रहा। बजाय जवाबी कार्रवाई के, उन्होंने बार-बार सीजफायर की अपील की। विश्लेषक मानते हैं कि यह कदम शांति की चाह से ज़्यादा नोबेल पुरस्कार की इच्छा से प्रेरित है।
जहाँ अमेरिका अपनी शक्ति दिखा सकता था, ट्रम्प ने कमज़ोरी दिखा दी। यदि यह बुश का दौर होता, तो ईरान पर शायद अब तक हमला हो चुका होता।
इज़रायल को भी झटका
इज़रायल, जो खुद को अमेरिका का सबसे करीबी सहयोगी मानता है, अब ट्रम्प की नीति से खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है। अमेरिका की ढीली प्रतिक्रिया यह संदेश दे रही है कि अब इज़रायल को खुद निर्णय लेने होंगे, ट्रम्प या अमेरिका पर पूरी तरह निर्भर रहना आत्मघाती हो सकता है।
इसीलिए इज़रायल को भारत से सीखना चाहिए—चुपचाप, ठोस और रणनीतिक प्रतिक्रिया देना। जब भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे अभियान चलाए, तो उसने दुनिया को संदेश दिया: हम शांति चाहते हैं, लेकिन कमजोरी नहीं दिखाएँगे।
यूरोप भारत की तरफ क्यों झुक रहा है?
वर्तमान वैश्विक परिस्थितियाँ भारत के पक्ष में हैं।
• अमेरिका और ट्रम्प की अनिश्चित नीतियों से तंग आकर यूरोप अब भारत को संभावनाओं की धरती के रूप में देख रहा है।
• ब्रिटेन में कीयर स्टार्मर की सरकार बनते ही भारत-ब्रिटेन ट्रेड डील्स तेज़ हो गईं, क्योंकि ट्रम्प की नीति ने ब्रिटेन को अमेरिका से दूर कर दिया।
फ़्रांस पहले ही दूरी बना चुका है, जर्मनी भी भारत में निवेश के अवसर खोज रहा है। यह सिर्फ मोदी सरकार की विदेश नीति नहीं, बल्कि भारत की स्थिरता, सुरक्षा और अवसरों का परिणाम है।
ट्रम्प की तुलना अगर भारतीय नेताओं से करें, तो एक दिलचस्प फर्क देखने को मिलता है।
• मुलायम सिंह यादव जब राजनीति से रिटायर हुए तो मोदी को दुबारा जीत का आशीर्वाद देने लगे।
• गुलाम नबी आज़ाद, अमरिंदर सिंह और फारुख अब्दुल्ला जैसे नेता अपनी गरिमा के साथ राजनीति से विदा हो रहे हैं।
भारत में बुढ़ापे को अनुभव और मार्गदर्शन का समय माना जाता है। वहीं ट्रम्प जैसे नेता बुजुर्गावस्था में भी सत्ता और पुरस्कार की लालसा से नहीं उबर पा रहे।
ट्रम्प की पॉलिटिक्स और भारत का उदय
डोनाल्ड ट्रम्प की नोबेल के प्रति दीवानगी आज अमेरिका को एक दिशाहीन महाशक्ति बना रही है। उनकी यह महत्वाकांक्षा सिर्फ अमेरिका ही नहीं, इज़रायल और पश्चिमी दुनिया के लिए भी खतरा बन सकती है।
इसके उलट, भारत ने शांति, सुरक्षा और अवसरों के ज़रिए दुनिया को एक नया विकल्प दिया है—एक जिम्मेदार शक्ति का विकल्प।
शब्दों से नहीं, नीति और नीयत से दुनिया बदलती है, और भारत शायद पहली बार उस भूमिका में है जहाँ वह दूसरों के भरोसे नहीं, अपने सामर्थ्य से विश्व मंच पर खड़ा है।