
नेतन्याहू की दशकों पुरानी योजना और नया मोड़: ईरान अगला निशाना?
बेंजामिन नेतन्याहू, इज़राइल के सबसे प्रभावशाली और लंबे समय तक शासन करने वाले नेताओं में से एक, हमेशा केवल आतंकवाद या किसी एक संगठन से लड़ने के पक्ष में नहीं रहे हैं। उनका लक्ष्य रहा है – उन राष्ट्रों को समाप्त करना, जिन्होंने इज़राइल का खुलकर विरोध किया है या फिलिस्तीन का समर्थन किया है। यह विचारधारा नई नहीं है। नेतन्याहू इसे 1990 के दशक से ही स्पष्ट कर चुके हैं।
अभी की जटिल वैश्विक स्थिति में नेतन्याहू की रणनीति को फिर से देखने का समय आ गया है, खासकर जब अमेरिका और ईरान आमने-सामने खड़े हैं और इज़राइल की छाया हर रणनीति के पीछे दिखाई देती है।
पिछले उदाहरण: क्या ये सिर्फ संयोग थे?
1. लीबिया – गद्दाफी का शासन भले ही पश्चिमी मीडिया की नज़र में तानाशाही वाला था, लेकिन देश में स्थायित्व और विकास था। लेकिन जैसे ही उन्होंने फिलिस्तीन के समर्थन में आवाज़ बुलंद की, देश विद्रोह की आग में झोंक दिया गया। अब लीबिया गृहयुद्ध का शिकार है।
2. सूडान – एक समय इज़राइल के विरोध में खड़ा हुआ, और आज दो हिस्सों में बंट चुका है। दोनों हिस्से गृहयुद्ध में फंसे हुए हैं।
3. इराक – सद्दाम हुसैन ने इज़राइल विरोधी तेवर दिखाए, परिणामस्वरूप न केवल सत्ता से बेदखल हुए, बल्कि फांसी पर लटकाए गए। इराक अब भी अस्थिरता से जूझ रहा है।
4. सीरिया – असद शासन फिलिस्तीन के लिए लगातार समर्थन करता रहा। अंततः गृहयुद्ध में झोंक दिया गया। वर्षों से वहाँ हालात सामान्य नहीं हो पाए।
अब अगला निशाना: ईरान
इन तमाम उदाहरणों में एक पैटर्न दिखता है – जो भी देश इज़राइल के खिलाफ खड़ा हुआ, या फिलिस्तीन का समर्थन किया, उसे भीतर से तोड़ने की रणनीति अपनाई गई। ईरान, एकमात्र देश था जो अब तक इस दबाव से बचा हुआ था।
लेकिन अब जब अमेरिका और ईरान के बीच सीधी भिड़ंत शुरू हो गई है, यह प्रतीत होता है कि नेतन्याहू की अगली चाल सफल हो रही है।
ईरान ने अमेरिका पर जवाबी कार्रवाई करके खुद को उस जाल में फंसा लिया है, जिसमें बाकी देश फंस चुके हैं।
रणनीति: युद्ध की तैयारी या दूसरों को युद्ध में फँसाना?
इज़राइल का तरीका हमेशा सीधा हमला नहीं होता। वे “प्रॉक्सी वॉर” की बजाय एक बड़े गेमप्लान के तहत काम करते हैं —
दूसरे को पहले उकसाओ, फिर उन्हें युद्ध में खींचो, और अंततः उन्हें भीतर से कमजोर करो।
ईरान ने वर्षों से खुद को स्थिर रखा, लेकिन अब वह भी उसी दिशा में जाता दिख रहा है जिस ओर लीबिया, इराक, और सीरिया चले थे।
नेतन्याहू का “लक्ष्य सिद्ध”?
अगर अगले कुछ हफ्तों में ईरान भी अस्थिरता या गृहयुद्ध की आग में झुलसता है, तो यह कहना गलत नहीं होगा कि बेंजामिन नेतन्याहू अपने दशकों पुराने संकल्प की परिणति देखेंगे – उन तमाम देशों को मिटाना, जो इज़राइल के लिए किसी भी प्रकार का खतरा बने हों।
नेतन्याहू शायद 21वीं सदी के उन विरले नेताओं में शामिल हो जाएं जिनकी रणनीति ने न सिर्फ दुश्मनों को हराया, बल्कि उन्हें अस्तित्व संकट में डाल दिया।
निष्कर्ष
दुनिया इस समय एक और बड़े टकराव के मुहाने पर खड़ी है। लेकिन जो चीज़ सबसे खतरनाक है वह है यह सोच – युद्ध एक योजना का हिस्सा हो, न कि एक प्रतिक्रिया।
ईरान को युद्ध के लिए तैयार रहना था, लेकिन वह इज़राइल के टाइम टेबल पर फंस चुका है।
आने वाला सप्ताह इस पूरे घटनाक्रम को निर्णायक दिशा में ले जा सकता है – न सिर्फ ईरान के लिए, बल्कि पूरे मध्य-पूर्व के लिए।
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