
आज की एक घटना शायद खबरों की भीड़ में दब जाए, लेकिन जो इसके पीछे छिपा संदेश है—वह भारत की सैन्य परंपरा, गौरव और विनम्रता की मिसाल है।
राष्ट्रपति भवन में आज का दृश्य कुछ अलग था। देश के वर्तमान थल सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी के साथ भारत के छह पूर्व थल सेनाध्यक्ष—जनरल वीपी मलिक, जनरल एनसी विज, जनरल जेजे सिंह, जनरल दीपक कपूर, जनरल बिक्रम सिंह और जनरल मनोज पांडे—राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मिलने पहुंचे।
सभी का उद्देश्य केवल एक था—राष्ट्रपति को उनके जन्मदिन की शुभकामनाएं देना। सुनने में भले ही यह एक औपचारिक भेंट लगे, लेकिन इसका महत्व बहुत गहरा है।
सात सेनाध्यक्ष, एक तस्वीर, एक आदर्श
सोचिए, बीते 25 वर्षों में भारतीय सेना का नेतृत्व करने वाले सात शीर्ष अधिकारी एक साथ मिलते हैं। ये वो लोग हैं जिनके नेतृत्व में 14-15 लाख सैनिकों की ताकत चलती रही। लेकिन इस तस्वीर की सबसे खास बात यह नहीं है कि वे कौन हैं, बल्कि यह है कि वे कैसे हैं।
इनमें से कोई भी सेवानिवृत्ति के बाद विदेश में नहीं बसा। कोई अमेरिका या यूरोप की चमक-दमक में नहीं गया। उनके पास न तो स्विस बैंक खाते हैं, न विदेशी टापू, न दुबई में होटल, न किसी अरबपति की जीवनशैली।
बल्कि इनमें से किसी की पत्नी स्कूल में पढ़ाती हैं, कोई सामान्य परिवार में रहते हैं, तो कोई छोटे से फ्लैट में जीवन बिता रहे हैं। सेवानिवृत्ति के बाद वे एक आम भारतीय की तरह सादा जीवन जीते हैं, बगैर किसी दिखावे के।
तुलना जो सब कुछ साफ कर देती है
अब इसी दृश्य की तुलना हम पड़ोस के एक देश से करें—जहां सेना का प्रमुख एक सैनिक से ज्यादा एक व्यापारी होता है। विदेशी नागरिकता, अरबों की संपत्ति, लग्जरी टापू और राजनीति में हस्तक्षेप वहाँ आम बात है। वहां का सेनाध्यक्ष सेवानिवृत्त नहीं होता, बल्कि अपनी उम्र बार-बार बढ़ा लेता है—कभी 4 साल, कभी 5 साल, ताकि सत्ता पर पकड़ बनी रहे।
और भारत में?
यहां जब कोई सेनाध्यक्ष रिटायर होता है, तो वो वर्दी उतारते ही भीड़ में शामिल हो जाता है—एक आम नागरिक बनकर।
भारत का गर्व: विनम्रता में छिपा नेतृत्व
भारतीय सेना के ये पूर्व सेनाध्यक्ष आज भी देश के लिए उतने ही समर्पित हैं जितने वर्दी में रहते हुए थे। वे नायक हैं—लेकिन बगैर ढोल-नगाड़ों के।
वे प्रेरणा हैं—बगैर प्रचार के।
वे सच्चे योद्धा हैं—जिनके पास त्याग, ईमानदारी और चरित्र की सबसे बड़ी संपत्ति है।
यही है भारत और दूसरों के बीच का फर्क
भारत की सेना केवल ताकत नहीं, एक मूल्य है। यह राष्ट्र की रीढ़ है—जो गर्व से खड़ी होती है लेकिन घमंड से नहीं। और आज जब सात सेनाध्यक्ष अपने राष्ट्रपति को बधाई देने पहुंचे, तो यह सिर्फ एक औपचारिकता नहीं थी—यह भारत की संस्थाओं के आपसी सम्मान, गरिमा और परंपरा का जीवंत उदाहरण था।
यह वही भारत है जहाँ सेना राजनीति से ऊपर है।
यह वही भारत है जहाँ वर्दी पहने व्यक्ति सेवा के बाद सम्मान से पीछे हटता है।
और यह वही भारत है जहाँ नेतृत्व का असली मतलब सेवा होता है—धंधा नहीं।
निष्कर्ष:
आज की यह छोटी सी घटना भारतीय लोकतंत्र और सैन्य अनुशासन का बड़ा प्रतीक बन गई है। भारत की ताकत उसकी मिसाइलों में नहीं, उसके मूल्यों में है। और यही अंतर हमें बाकी दुनिया से अलग करता है—खासकर उनसे जिनके लिए वर्दी सिर्फ सत्ता की सीढ़ी है, न कि सेवा का प्रतीक।