
भारत ने चीन में आयोजित एससीओ समिट में साझा स्टेटमेंट पर साइन करने से इनकार कर दिया। जानिए इसके पीछे की वजह, राजनाथ सिंह का रुख, और क्या भारत को SCO में बने रहना चाहिए?
चीन में SCO समिट और भारत का साहसिक रुख
बीजिंग में आयोजित Shanghai Cooperation Organisation (SCO) की रक्षा मंत्रियों की बैठक में भारत ने एक ऐसा फैसला लिया जिसने अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी। जब सभी सदस्य देशों ने साझा स्टेटमेंट पर हस्ताक्षर किए, तो भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उस पर साइन करने से साफ इनकार कर दिया।
इस कदम ने न सिर्फ भारत की कूटनीतिक दृढ़ता को दिखाया, बल्कि चीन की अगुवाई में चल रहे इस संगठन के रवैये पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए।
क्या था स्टेटमेंट में जिसे भारत ने खारिज किया?
SCO द्वारा तैयार किए गए संयुक्त बयान में बलूचिस्तान में हुए आतंकी हमलों की निंदा की गई थी—जैसे कि जाफर एक्सप्रेस पर हमला या BLA की गतिविधियाँ। लेकिन जब पुलवामा हमले जैसे भारत के भीषण आतंकवादी घटनाओं की बात आई—तो उसका कोई ज़िक्र तक नहीं किया गया।
यही कारण था कि राजनाथ सिंह और भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने इस स्टेटमेंट को “पक्षपाती और अधूरा” मानते हुए उस पर साइन करने से इनकार कर दिया।
वीडियो फुटेज बना प्रमाण
सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में साफ दिखता है कि राजनाथ सिंह स्टेटमेंट को गहराई से पढ़ रहे हैं, पेन उनके हाथ में है—लेकिन वह तब तक साइन नहीं करते जब तक दस्तावेज़ निष्पक्ष न हो। उनके साथ बैठे भारतीय राजनयिक भी गंभीर मुद्रा में हैं। यह साफ संदेश था कि भारत अब केवल ‘हां में हां’ मिलाने वाली नीति पर नहीं चलता।
भारत पहले भी जता चुका है असहमति
यह कोई पहली बार नहीं है जब भारत ने SCO के स्टेटमेंट से खुद को अलग किया है। कुछ महीनों पहले ईरान-इज़राइल मसले पर, जब SCO ने इज़राइल की आलोचना करते हुए बयान जारी किया था, तो भारत ने उसे समर्थन देने से इनकार कर दिया था।
इज़राइल ने भारत के इस स्वतंत्र रुख की खुले तौर पर सराहना की थी।
चीन की SCO में ‘Selective Condemnation’ की नीति
भारत का यह रुख चीन को एक डिप्लोमैटिक झटका है। चीन SCO का इस्तेमाल अपने भू-राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए करता है। जब आतंकवाद जैसे मुद्दों पर भी selective condemnation की नीति अपनाई जाती है, तो यह संगठन की विश्वसनीयता पर सीधा प्रहार है।
फ्रेंच में बोले थरूर, पाकिस्तान को किया एक्सपोज
हाल ही में सामने आए एक अन्य वीडियो में डॉ. शशि थरूर एक रूसी अधिकारी को फ्रेंच भाषा में समझाते दिखते हैं कि पाकिस्तान को आतंकवाद-विरोधी समूहों का हिस्सा बनाना एक बड़ी मूर्खता होगी।
“We can’t just pretend these terrorist groups aren’t being funded and sheltered there,”
उन्होंने साफ कहा कि पाकिस्तान का दोहरा रवैया अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उजागर होना चाहिए।
बॉलीवुड का ढुलमुल रवैया भारत की छवि को कमजोर करता है
जहाँ एक ओर भारत कूटनीतिक रूप से पाकिस्तान को बेनकाब कर रहा है, वहीं दूसरी ओर कुछ बॉलीवुड कलाकार पाकिस्तान से जुड़े कलाकारों के साथ काम कर रहे हैं। यह भारत के ठोस अंतरराष्ट्रीय संदेश को कमजोर करता है और एकजुटता की कमी को दर्शाता है।
क्या भारत को अब भी SCO में रहना चाहिए?
फायदे:
• भारत को मध्य एशियाई देशों से जुड़ने का मंच मिलता है।
• सुरक्षा, ऊर्जा और कनेक्टिविटी के मुद्दों पर चर्चा का अवसर।
नुकसान:
• चीन और पाकिस्तान जैसे देशों का वर्चस्व, जो भारत विरोधी एजेंडा चलाते हैं।
• भारत की आवाज़ अक्सर अनसुनी की जाती है।
SCO फिलहाल भारत के लिए एक जियोपॉलिटिकल मॉक टेस्ट की तरह है—जहाँ भारत ने साबित किया है कि वह प्रेशर में नहीं झुकता। लेकिन असल परीक्षा तब होगी जब भारत को निर्णायक नीति लेनी होगी—रहना है या बाहर निकलना है।
राजनाथ सिंह द्वारा साझा स्टेटमेंट पर साइन न करना एक निडर और दूरदर्शी कदम था। इससे भारत ने ये साफ कर दिया कि वह आतंकवाद जैसे गंभीर मुद्दों पर कोई समझौता नहीं करेगा।
यदि SCO जैसी संस्थाएं निष्पक्ष नहीं बनतीं, तो भारत का उसमें बने रहना सिर्फ राजनीतिक शिष्टाचार बनकर रह जाएगा।