
“जो कभी मरा ही नहीं, वो जिंदगी से कैसे हार मान ले?” – यही है मेजर डीपी सिंह की कहानी का सार।
1999 का साल था। कारगिल की बर्फीली चोटियों पर भारत और पाकिस्तान के बीच भीषण युद्ध चल रहा था। गोलियों की बौछार और बमों की बारिश के बीच एक भारतीय सैनिक बुरी तरह घायल हो चुका था। डॉक्टरों ने उसे “मृत” घोषित कर दिया, लेकिन किस्मत ने कुछ और ही लिखा था।
इस सैनिक का नाम है मेजर डीपी सिंह। आज वह ना सिर्फ एक जीवित किंवदंती हैं, बल्कि भारत के पहले ब्लेड रनर और लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत भी।
💥 क्या हुआ था उस दिन?
मेजर डीपी सिंह एक मिशन पर थे जब एक बड़ा धमाका हुआ। ब्लास्ट इतना भयंकर था कि 8 किलोमीटर के दायरे में सब कुछ तबाह हो गया। कई साथी शहीद हो गए। डीपी सिंह का एक पैर वहीं कट गया और शरीर में 40 से ज्यादा गहरे घाव थे।
उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
तभी, जैसे चमत्कार हुआ – एक सीनियर डॉक्टर की वजह से उनके शरीर में फिर से जान आई।
“मैं दोबारा जी उठा। वो दिन था 15 जुलाई। अब मैं हर साल इस दिन को अपना पुनर्जन्म दिवस मानता हूं।”
🦿 ‘ब्लेड रनर’ बनने की शुरुआत
मेजर डीपी सिंह की कहानी यहीं खत्म नहीं होती। मौत को मात देने के बाद भी उनके संघर्ष खत्म नहीं हुए।
2009 में उन्होंने कृत्रिम पैर (ब्लेड प्रोस्थेसिस) के सहारे चलना सीखा और फिर तो इतिहास रच दिया:
• 21 किमी की हाफ मैराथन दौड़ने वाले भारत के पहले ब्लेड रनर बने
• तीन मैराथन में हिस्सा लिया
• दो बार लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज कराया
🏆 ‘The Challenging Ones’ – दूसरों को भी दी नई दिशा
2011 में मेजर सिंह ने ‘The Challenging Ones’ नामक ग्रुप की स्थापना की। इस ग्रुप में अब 800 से अधिक सदस्य हैं – जिनमें से कई लोग पैरालंपिक, दौड़, तैराकी और बाइकिंग जैसी गतिविधियों में भाग ले रहे हैं।
“मैं अकेला नहीं लड़ रहा हूं। अब मेरी पूरी आर्मी है, जो समाज को दिखा रही है कि विकलांगता कोई कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत बन सकती है।”
🌍 क्यों खास है मेजर डीपी सिंह की कहानी?
• वो एक वॉर हीरो हैं, जिन्होंने देश के लिए जान दी… और फिर दोबारा जिंदगी पाई।
• उन्होंने न केवल खुद को उठाया, बल्कि हजारों लोगों की ज़िंदगी में आशा की किरण बने।
• उनका जज्बा बताता है: “जिंदगी कभी खत्म नहीं होती, जब तक आप खुद हार नहीं मानते।”
📌 निष्कर्ष: हम सब के लिए एक सबक
मेजर डीपी सिंह की कहानी सिर्फ एक युद्ध की नहीं, बल्कि आत्मबल, साहस और इंसानी जिद की कहानी है। एक ऐसा योद्धा, जिसने मौत को हराया, तकदीर को बदला और हजारों जिंदगियों को जीने का हौसला दिया।
अगर कभी लगे कि जिंदगी मुश्किल हो गई है, तो मेजर डीपी सिंह की कहानी याद रखिए – मौत भी जिसे रोक न सकी।