
जानिए कैसे चीनी मोबाइल कंपनियों ने भारत में अपने स्मार्टफोन बिजनेस को खड़ा किया और कैसे यह भारत के युवाओं के लिए बना एक सुनहरा अवसर। पढ़िए पूरी कहानी, रणनीति और इसका भारत पर असर।
भारत में मोबाइल क्रांति: एक यात्रा 2008 से 2025 तक
2008-10 का दौर याद कीजिए। देश के लोग Featured फोन से Touchscreen Smartphone की ओर बढ़ रहे थे। Samsung और HTC Android के साथ बाजार में थे, वहीं Apple अपना iPhone लेकर आया था। दूसरी ओर, Nokia अब भी अपने Symbian सिस्टम को पकड़कर बैठा था।
इसी समय भारतीय बाजार में कुछ देसी ब्रांड जैसे Micromax, Lava और Karbonn भी उतरने लगे। इन्होंने चीन में बने फोन को रीब्रांड करके भारत में बेचना शुरू किया। लेकिन बाजार में असली तूफान तब आया जब चीनी नकली मोबाइल फोन की बाढ़ आ गई—जो देखने में ब्रांडेड लगते थे लेकिन असल में घटिया और अविश्वसनीय होते थे।
एक नयी डिमांड: सस्ते लेकिन भरोसेमंद स्मार्टफोन की
इस समय भारत में एक बड़ी डिमांड पैदा हुई—कम कीमत में अच्छे फीचर्स वाले, भरोसेमंद स्मार्टफोन की। जनता न तो नकली चीनी फोन चाहती थी और न ही महंगे विदेशी ब्रांड्स।
इसी डिमांड-सप्लाई गैप को समझा चीन की कंपनियों ने। और यहां से शुरू हुई Xiaomi, Oppo, Vivo, Realme और OnePlus जैसी कंपनियों की भारत में सफलता की कहानी।
पहली रणनीति: No Factory, No Store – सिर्फ Online Market
इन कंपनियों ने शुरुआत की बिना किसी दुकान, फैक्ट्री या डिस्ट्रीब्यूशन चैनल के।
• Go-To-Market Strategy अपनाई गई
• Amazon और Flipkart जैसे प्लेटफॉर्म से सीधा स्मार्टफोन बेचना शुरू किया
• कोई रिटेल खर्च नहीं, कोई मिडलमैन नहीं, बस सीधा ग्राहक से संपर्क
इस मॉडल ने इन्हें बेहद कम कीमत पर हाई-स्पेक स्मार्टफोन बेचने में सक्षम बना दिया। नतीजा यह हुआ कि कुछ ही वर्षों में इन कंपनियों ने भारतीय स्मार्टफोन बाजार का 60–70% हिस्सा कब्जा लिया।
लेकिन इसका भारत को क्या मिला?
❌ नुकसान
• उत्पाद चीन में बने
• पैसा सीधे चीन गया
• भारत में कोई नौकरी नहीं, कोई तकनीकी ज्ञान नहीं
✅ अब बदलाव आया
जब 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन का दौरा किया, तो उन्होंने चीनी कंपनियों को भारत में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स लगाने का न्योता दिया। और यहीं से शुरुआत हुई दूसरे और बेहतर परिदृश्य की।
दूसरा परिदृश्य: Made in India की ओर कदम
अब ये कंपनियाँ सिर्फ बेचने नहीं, भारत में निर्माण करने भी लगीं:
प्रमुख घटनाएं:
• Xiaomi, Oppo, Vivo, OnePlus, Realme के प्लांट्स नोएडा, चेन्नई, बंगलुरु में लगे
• Foxconn जैसी कंपनियां भी भारत आईं, जो Apple के iPhone बनाती हैं
• इन कंपनियों ने लाखों भारतीयों को नौकरी दी
हमें क्या मिला?
✅ आर्थिक और सामाजिक लाभ:
• 95%+ भारतीयों को नौकरी
• Core Engineering Graduates को घर के पास अवसर
• High-tech R&D, Testing और Quality Control भारत में शुरू
• Indirect Jobs: सर्विस सेंटर, सेल्स चैनल, सप्लाई चेन आदि
✅ टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भरता:
• आज कई पार्ट्स भारत में ही बन रहे हैं
• कई कंपनियां Design से लेकर Assembly तक यहीं करती हैं
• भारतीय युवा Cutting Edge टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे हैं
क्यों दूसरा मॉडल बेहतर है?
यदि लोग चीनी फोन खरीद ही रहे हैं, तो बेहतर है कि वो फोन भारत में बने, भारतीयों द्वारा बने और भारत में ही बिके।
• पैसा भारत में ही घूमेगा
• नौकरियाँ बनेंगी
• टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और स्किल अपग्रेड होगा
• भविष्य में एक भारतीय ब्रांड की नींव पड़ेगी
क्या यह पूरी तरह स्वदेशी है?
नहीं, अभी भी कई पार्ट्स विदेश से आते हैं। लेकिन:
• दिन-ब-दिन लोकल मैन्युफैक्चरिंग बढ़ रही है
• R&D भारत में हो रही है
• कंट्रोल धीरे-धीरे भारतीयों के हाथ में आ रहा है
सरकार ने इन कंपनियों द्वारा किए गए टैक्स चोरी और अवैध फंड ट्रांसफर पर भी एक्शन लिया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भारत सिर्फ बाजार नहीं, अब गंभीर पार्टनर बन चुका है।
निष्कर्ष:
“विकल्प बनाइए, बहिष्कार अपने आप हो जाएगा”
चीनी मोबाइल कंपनियों को गालियाँ देने से अच्छा है कि हम उसी सिस्टम को भारत के हक में बदलें, जैसा कि अब हो रहा है। लाखों भारतीय आज उन्हीं कंपनियों में काम करके रोज़गार और अनुभव दोनों पा रहे हैं।
भविष्य में हो सकता है कि इन्हीं अनुभवों से एक नया, मजबूत भारतीय मोबाइल ब्रांड उभरे। लेकिन तब तक, यह दूसरा परिदृश्य ही भारत के हित में है—व्यावहारिक, आर्थिक और तकनीकी दृष्टि से।
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