
1963 में जब तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री के. कामराज ने अपने पद से इस्तीफ़ा दिया और “कामराज प्लान” ने जन्म लिया, तब शायद किसी ने नहीं सोचा था कि इसका दूरगामी असर भारतीय राजनीति के केंद्र और राज्यों के संतुलन पर पड़ेगा। यह योजना कांग्रेस की अंदरूनी सर्जरी थी, लेकिन इसका परिणाम पार्टी के बिखराव, क्षेत्रीय नेताओं के उभार और अंततः केंद्रीय नेतृत्व की चुनौती के रूप में सामने आया। इस लेख में हम समझेंगे कि कैसे कांग्रेस की गलतियों से बीजेपी ने सबक लिया और क्यों वह 2047 की रणनीति के साथ केंद्रीय अनुशासन की राह पर चल रही है।
कामराज प्लान: नेहरू जी की चाल या इंदिरा गाँधी के लिए राह?
• 1963 में कामराज ने प्रस्ताव रखा कि जो मुख्यमंत्री और मंत्री 10 साल से सत्ता में हैं, वे त्यागपत्र दें और संगठनात्मक कार्य करें।
• नेहरू ने इस प्लान को समर्थन दिया, लेकिन इसका असली उद्देश्य इंदिरा गांधी के लिए कांग्रेस में मार्ग प्रशस्त करना था।
• धीरे-धीरे इंदिरा गांधी ने कामराज जैसे नेताओं को हाशिये पर ढकेल दिया और कांग्रेस पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली।
इंदिरा गांधी और कांग्रेस का विभाजन: क्षेत्रीय नेताओं का उदय
• इंदिरा गांधी ने जब कांग्रेस को तोड़ा, तब कई बुज़ुर्ग नेता बाहर हो गए और नए चेहरे उभरे:
• महाराष्ट्र में शरद पवार
• मध्यप्रदेश में अर्जुन सिंह और शुक्ल ब्रदर्स
• तमिलनाडु में DMK से गठजोड़ करके कामराज को मात देना
• इन नेताओं ने इंदिरा को तत्कालीन लाभ तो पहुँचाया, लेकिन ये बीज बाद में कांग्रेस के लिए आत्मघाती साबित हुए।
कांग्रेस का पतन और क्षेत्रीय राजनीति का विषवृक्ष
• कांग्रेस ने जिस क्षेत्रीय राजनीति को सींचा, वही बाद में उसकी जड़ काटने लगी।
• जैसे ही राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने, इन नेताओं को लगा कि उनका हक छीना जा रहा है:
• कई नेताओं ने खुद की पार्टी बना ली
• कई बीजेपी में शामिल हो गए
• गिरधर गमांग जैसे नेताओं ने तो यहां तक कह दिया कि वे सदैव RSS के प्रशंसक रहे हैं।
बीजेपी का पाठ: अनुशासन, केंद्रीयकरण और दीर्घकालीन दृष्टि
• बीजेपी ने कांग्रेस की इन गलतियों से सीखा और अपने संगठन को निजी कंपनी की तरह सुदृढ़ किया:
• केंद्रीय नेतृत्व का सम्मान
• संघ की विचारधारा से जुड़ाव
• अनुशासन में किसी भी क्षेत्रीय नेता को नियंत्रण में रखना
उदाहरण:
• तमिलनाडु में अन्नामलाई को अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा
• तेलंगाना में टी. राजा सिंह को पार्टी से बाहर किया गया
संघ की भूमिका और उत्तराधिकार की स्पष्टता
• संघ में उत्तराधिकारी चुना जाता है, यह किसी परिवारवाद या क्षेत्रीय दबाव से तय नहीं होता।
• वाजपेयी और मोदी के संबंध में यही बात स्पष्ट होती है—राजनीतिक गुरु-शिष्य नहीं, बल्कि विचारधारा का उत्तराधिकारी।
• यही अनुशासन और व्यवस्था बीजेपी को 2047 के भारत के लिए तैयार कर रही है।
यदि संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी, तो क्या होगा?
• आज की राजनीतिक स्थिरता Make in India, Startup India, तेज़ GDP वृद्धि और सैन्य आधुनिकीकरण को संभव बना रही है।
• लेकिन यदि क्षेत्रीय नेताओं के गठबंधन से संयुक्त सरकार बनती है:
• नीतिगत निर्णय टल सकते हैं
• विकास की गति धीमी हो जाएगी
• राष्ट्रीय हितों पर स्थानीय समझौते भारी पड़ सकते हैं
इतिहास से सबक: जब नेता थे, उत्तराधिकारी नहीं
कुछ उदाहरण जिनसे साफ़ है कि अनुशासन और विचारधारा के बिना सत्ता का उत्तराधिकार स्थिर नहीं रह पाता:
• कर्पूरी ठाकुर – आज उनकी विरासत बिखरी हुई है
• जयललिता – पार्टी बाद में बिखराव का शिकार बनी
• चौधरी चरण सिंह, वीपी सिंह, चंद्रशेखर – आज उनके उत्तराधिकारी राजनीति में संघर्षरत
निष्कर्ष: अनुशासन ही विकास की आधारशिला है
भारत जैसे विविधताओं से भरे देश में अनुशासन, विचारधारा और दीर्घकालीन दृष्टि ही राष्ट्र को आगे ले जा सकती है। कांग्रेस ने क्षेत्रीय नेताओं को बढ़ावा देकर अपनी राजनीतिक नींव खो दी। वहीं बीजेपी ने केंद्रीय नेतृत्व को सशक्त बनाकर, विचारधारा को आधार बनाकर और संघ के सिद्धांतों पर चलकर राजनीतिक स्थायित्व का नया मानक बनाया है।
2047 का भारत कैसा होगा, यह इस पर निर्भर करता है कि हम केंद्रीय अनुशासन को महत्व देते हैं या क्षेत्रीय महत्त्वाकांक्षाओं को।
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