
जब पर्दे का हीरो असल ज़िंदगी का मसीहा बना
7 जुलाई—एक तारीख जो हिंदी सिनेमा प्रेमियों के दिलों में भावुकता का तूफ़ान ला देती है। इसी दिन 2021 में, दिलीप कुमार इस दुनिया को अलविदा कह गए थे। लेकिन उनकी अदायगी जितनी यादगार रही, उतनी ही प्रेरक रही उनकी ज़िंदगी के कुछ अनकहे किस्से।
आज हम आपको शक्ति (1982) फिल्म की शूटिंग के दौरान घटी एक रहस्यमयी और सनसनीखेज किडनैपिंग की सच्ची घटना बताएंगे, जिसमें मुशीर आलम नामक निर्माता को दिनदहाड़े अगवा कर लिया गया था। और इस मामले को हल कराने में अहम भूमिका निभाई थी खुद दिलीप कुमार ने।
शक्ति फिल्म की पृष्ठभूमि और निर्माता जोड़ी मुशीर-रियाज़
1980 के दशक में मुशीर-रियाज़ की जोड़ी बॉलीवुड की सफलतम प्रोड्यूसर जोड़ी मानी जाती थी। बैराग, अपने पराए, राजपूत जैसी फिल्मों के बाद उन्होंने शक्ति नामक फिल्म बनाई जिसमें दो महान सितारे—अमिताभ बच्चन और दिलीप कुमार एक साथ स्क्रीन साझा कर रहे थे।
लेकिन इसी फिल्म की शूटिंग के दौरान कुछ ऐसा हुआ जिसने पूरे बॉलीवुड को हिला कर रख दिया।
22 सितंबर 1984: जब मुशीर आलम को अगवा कर लिया गया
शाम के क़रीब 4 बजे, मुशीर आलम अपने वर्ली स्थित ऑफिस के लिए निकले थे। तभी एक सफेद अंबेसडर कार ने उनकी गाड़ी को ओवरटेक करके रोका। तीन हथियारबंद बदमाश बाहर निकले और मुशीर आलम को जबरन अपनी कार में बैठा लिया। उनकी आंखों पर पट्टी बांध दी गई।
शोले का पोस्टर और कुरान की आवाज़ें – सुरागों की पहली झलक
गाड़ी में आंखों पर पट्टी बंधी होने के बावजूद मुशीर आलम सतर्क रहे। उन्होंने पट्टी के नीचे से झांककर शोले का पोस्टर देखा और बाद में किसी मदरसे जैसी जगह की आवाज़ें सुनीं, जहां बच्चे कुरान पढ़ रहे थे।
किडनैपर्स की मांग और रिहाई का सौदा
किडनैपर्स ने 25 लाख रुपए फिरौती की मांग की, लेकिन सौदा 3 लाख रुपए में तय हुआ। पैसे मिलते ही मुशीर आलम को रिहा कर दिया गया। लेकिन अब तक यह मामला फिल्म इंडस्ट्री में आग की तरह फैल चुका था।
दिलीप कुमार की एंट्री और जांच का नया मोड़
दिलीप कुमार ने पुलिस कमिश्नर से मुलाकात की और इस कांड की गहराई से जांच की मांग की। उनके साथ प्रोड्यूसर रियाज़ और खुद मुशीर आलम भी मौजूद थे।
इस केस की जांच क्राइम ब्रांच के तेजतर्रार अफसर इसाक़ बागवान को सौंपी गई।
मुशीर आलम के जवाब और पुलिस की सूझबूझ
इसाक़ बागवान ने मुशीर आलम से सूक्ष्म सवाल पूछे:
• सीढ़ियों की संख्या?
• किस तरह की गंधें थीं?
• आवाज़ें कैसी थीं?
इन जवाबों के आधार पर उन्होंने अंदाजा लगाया कि मुशीर को नागपाड़ा इलाके में रखा गया होगा। यही नहीं, कुछ सुरागों के आधार पर पुलिस उस कमरे तक पहुंच गई जहां मुशीर को बंधक बनाया गया था।
कौन था असली मास्टरमाइंड?
जांच में सामने आया कि किडनैपिंग की साजिश फिल्म इंडस्ट्री के ही एक इंसान ने रची थी—अहमद सैयद खान, जिसे एक गिरोह ने जानबूझकर फिल्म इंडस्ट्री में पहुंचाया था।
यह गिरोह दाऊद इब्राहिम का दुश्मन था और आर्थिक तंगी के चलते उसने फिल्म निर्माताओं को टारगेट करने की योजना बनाई थी।
इस घटना का ज़िक्र कहाँ-कहाँ मिलता है?
• एस. हुसैन ज़ैदी ने इस किस्से को अपने यूट्यूब चैनल पर साझा किया है।
• इसाक़ बागवान ने इस घटना को विस्तार से अपनी किताब “Me Against Mumbai Underworld” में लिखा है।
दिलीप कुमार: पर्दे पर ही नहीं, असल ज़िंदगी में भी ‘शक्ति’
दिलीप कुमार सिर्फ परदे के ट्रैजिक हीरो नहीं थे, बल्कि जब वक्त आया, उन्होंने दोस्त और साथी कलाकार की सुरक्षा के लिए आगे बढ़कर इंसाफ की मांग की। उनकी हिम्मत और सामाजिक ज़िम्मेदारी की भावना इस पूरे केस में साफ नज़र आई।
ये कहानी सिर्फ किडनैपिंग की नहीं, बॉलीवुड की ‘शक्ति’ की है
यह सिर्फ एक किडनैपिंग केस नहीं था, बल्कि एक ऐसा मोड़ था जिसने बताया कि बॉलीवुड सिर्फ ग्लैमर की दुनिया नहीं, वहां इंसानियत, दोस्ती और न्याय के लिए खड़े होने वाले लोग भी हैं।
दिलीप कुमार की इस भूमिका ने उन्हें एक बार फिर से साबित किया—वो सिर्फ सिल्वर स्क्रीन के नहीं, हमारे दिलों के सच्चे नायक थे।
आप क्या सोचते हैं?
क्या आज के फिल्मी सितारे भी इसी तरह अपने साथियों के लिए आगे आते हैं?
क्या आपने दिलीप कुमार से जुड़ा कोई ऐसा किस्सा सुना है जिसे लोग नहीं जानते? नीचे कमेंट में जरूर बताएं।