
भारतीय क्रिकेट इतिहास में कई यादगार लम्हे दर्ज हैं, लेकिन 1999 के दिल्ली टेस्ट में अनिल कुंबले द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ एक ही पारी में 10 विकेट चटकाना आज भी एक चमत्कार जैसा लगता है। यह सिर्फ एक रिकॉर्ड नहीं था। यह जुनून, धैर्य और किस्मत की एक ऐसी कहानी थी, जिसमें ड्रामा भी था और साजिश भी। क्या आप जानते हैं कि पाकिस्तान के तेज़ गेंदबाज़ वकार यूनुस ने उस मैच में कुंबले को 10वां विकेट लेने से रोकने के लिए चाल चली थी? चलिए, उस ऐतिहासिक दिन की परतें खोलते हैं और जानते हैं उस मुकाबले के हर वो पहलू को जो आज भी हमे रोमांचित कर देते है।
दिल्ली टेस्ट 1999: जंग से कम नहीं था ये मुकाबला
1999 में फिरोजशाह कोटला (अब अरुण जेटली स्टेडियम) की पिच पर भारत और पाकिस्तान आमने-सामने थे। ये मुकाबला किसी आम टेस्ट मैच जैसा नहीं था। यह भारत-पाक की प्रतिष्ठा का प्रश्न था। भारत ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 252 रन बनाए। पाकिस्तानी स्पिनर सकलैन मुश्ताक ने कमाल की गेंदबाज़ी करते हुए 5 विकेट झटके और एक ही ओवर में कुंबले और श्रीनाथ को पवेलियन भेजा।
इसके बाद भारतीय गेंदबाज़ों ने पलटवार किया और पाकिस्तान की पूरी टीम को मात्र 172 रनों पर समेट दिया। इस तरह भारत को पहली पारी में 80 रनों की बढ़त मिल गई। तीसरी पारी में भारत ने 339 रन जोड़कर पाकिस्तान को 420 रनों का एक विशाल लक्ष्य दिया।
सईद अनवर और अफरीदी की तूफानी शुरुआत
जब पाकिस्तान लक्ष्य का पीछा करने उतरा, तो शुरुआत बेहद धमाकेदार रही। सईद अनवर और शाहिद अफरीदी ने पहले विकेट के लिए 101 रन जोड़ दिए। ऐसा लगने लगा कि पाकिस्तान ये लक्ष्य हासिल कर सकता है। लेकिन तभी भारतीय कप्तान ने अपने सबसे भरोसेमंद हथियार अनिल कुंबले को आक्रमण पर लगाया।
कुंबले की गेंदबाज़ी: जैसे शेर ने शिकार शुरू किया हो
कुंबले ने आते ही दो गेंदों में दो विकेट लेकर पाकिस्तान की कमर तोड़ दी। फिर तो जैसे पाकिस्तान की पारी बिखरती चली गई। एक-एक करके बल्लेबाज़ कुंबले के जाल में फंसते गए। ना स्विंग, ना स्पिन। केवल लाइन, लेंथ और दिमाग के दम पर कुंबले ने अपना जादू दिखाया।
हर तीन-चार ओवर बाद एक विकेट गिरता गया, और स्कोरबोर्ड पर कुंबले के नाम के आगे विकेट बढ़ते गए। कोई दूसरा गेंदबाज़ दूसरे छोर से विकेट नहीं ले सका। 198 रनों पर पाकिस्तान के 9 विकेट गिर चुके थे, और ये सभी 9 विकेट कुंबले के थे।
वकार यूनुस की चाल: “रन आउट हो जाते हैं, कुंबले को 10 विकेट नहीं मिलेंगे”
जब आखिरी जोड़ी में वसीम अकरम और वकार यूनुस क्रीज़ पर थे, तो वकार ने एक शातिर प्लान बनाया। उन्होंने अकरम से कहा, “क्यों न हम रन आउट हो जाएं? कुंबले को 10 विकेट नहीं मिलेंगे।”
ये एक क्रिकेट मैच नहीं, एक मानसिक युद्ध बन चुका था। वकार की मंशा थी कि कुंबले को इतिहास रचने से रोका जाए। लेकिन अकरम ने इंसानियत और खेल भावना दिखाई। उन्होंने कहा, “अगर उसकी किस्मत में 10 विकेट लिखे हैं, तो उसे कोई नहीं रोक सकता। लेकिन कुंबले मुझे आउट नहीं कर पाएगा।”
नियति का न्याय: अगला ओवर और इतिहास बन गया
कुंबले अगले ओवर में गेंदबाज़ी पर आए। पहली ही कुछ गेंदों में उन्होंने वसीम अकरम को चकमा दे दिया। अकरम का बल्ला गेंद से चूका और कैच स्लिप में चला गया। पूरा फिरोजशाह कोटला स्टेडियम गूंज उठा।
अनिल कुंबले बन गए दुनिया के दूसरे गेंदबाज़ जिन्होंने टेस्ट मैच की एक पारी में सभी 10 विकेट लिए।
पहले थे जिम लेकर, अब कुंबले
इससे पहले यह करिश्मा केवल इंग्लैंड के महान गेंदबाज़ जिम लेकर ने 1956 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ किया था। 43 साल बाद, अनिल कुंबले ने दिल्ली की धरती पर यह कारनामा दोहराया।
नतीजा: भारत की ऐतिहासिक जीत
पाकिस्तान की पूरी टीम 207 रन पर ऑलआउट हो गई और भारत ने यह मुकाबला 212 रनों से जीत लिया। लेकिन यह जीत स्कोरबोर्ड पर दर्ज एक नंबर से कहीं अधिक थी। यह थी आत्मविश्वास की जीत, मानसिक मजबूती की जीत, और खेल भावना की जीत।
सिर्फ गेंदबाज़ी नहीं, एक प्रेरणा
अनिल कुंबले का यह स्पैल सिर्फ विकेट लेने का नहीं था—यह क्रिकेट में चरित्र, धैर्य और कर्म पर विश्वास का प्रतीक था। जहां एक तरफ वकार यूनुस ने चालाकी से कुंबले को रोकने की कोशिश की, वहीं वसीम अकरम ने खेल की गरिमा बनाए रखी।
और अंत में, नियति ने अपना फैसला सुनाया और कुंबले को 10 में 10 विकेट दिए।