
भारतीय राजनीति के मौजूदा दौर में जब कांग्रेस अपने अस्तित्व की आखिरी लड़ाई लड़ रही है, तब भारतीय जनता पार्टी को ऐसा अध्यक्ष चाहिए जो उसे पूरी तरह नेस्तनाबूद कर सके। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बाद यदि कोई नेता है जिसने कांग्रेस को जड़ से उखाड़ फेंकने का काम किया है, तो वो हैं शिवराज सिंह चौहान।
मध्यप्रदेश से कांग्रेस का अंत एक दिन में नहीं हुआ, यह कहानी है रणनीति, संघर्ष, और सत्ता-संचालन की। यह कहानी है एक ऐसे नेता की, जो दिल्ली की सड़कों से पगयात्रा करते-करते प्रदेश की गद्दी पर पहुंचा और फिर वहां से कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील ठोक दी।
2003: जब बीजेपी ने सत्ता का सिंहासन पाया, पर स्थिरता दूर थी
2003 का साल। मध्यप्रदेश की राजनीति में उबाल था। उमा भारती के नेतृत्व में बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की—173 सीटें। लेकिन तिरंगा विवाद की आंच में उमा को कुर्सी गंवानी पड़ी। इसके बाद सत्ता बाबूलाल गौर के हाथों में आई, लेकिन वो भी महज़ एक अंतरिम अध्याय साबित हुए।
उमा भारती की वापसी के साथ ही बीजेपी में अंतर्कलह भड़क उठी। 2005 का दशहरा, 98 विधायक उमा के घर पहुंचे थे। अगर उस दिन बगावत हो जाती, तो शायद बीजेपी मध्यप्रदेश से फिर कभी नहीं उठ पाती।
दिल्ली से भोपाल तक: शिवराज की अदृश्य चालें
बीजेपी नेतृत्व इस गहराते संकट से जूझ रहा था। तभी दिल्ली में बैठे एक शांत पर चतुर नेता पर सभी की नजरें टिकीं—शिवराज सिंह चौहान। पगयात्राओं से लोगों के दिलों में जगह बना चुके शिवराज ने इस अवसर को मौके की तरह देखा।
पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने अखबार में लेख लिखा—“शिव ही सुंदर है”। यह इशारा था, और बीजेपी ने उसे पढ़ लिया। विधानसभा में शिवराज का आगमन हुआ और मेजें थपथपाने की आवाज़ों ने नेतृत्व परिवर्तन की पटकथा लिख दी।
रणनीति का मास्टर: कैसे शिवराज ने खुद को तैयार किया
मुख्यमंत्री बनने से पहले शिवराज एक सांसद थे, फिर भी प्रदेश की राजनीति में बेहद सक्रिय थे। उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव लड़ा, भले ही हार निश्चित थी—यह उनके भीतर की राजनीतिक प्यास और दूरदर्शिता का प्रतीक था।
विधायकों के छोटे-छोटे कामों में निजी रुचि, दिल्ली दरबार से निकटता और जमीनी पकड़—इन सबने उन्हें सत्ता के सबसे मजबूत दावेदार के रूप में स्थापित कर दिया।
2008: डकैतों और माफियाओं का अंत, शिवराज की विजयगाथा की शुरुआत
राज्य की हालत बदहाल थी। कांग्रेस की 10 साल की सत्ता में प्रदेश विकास से कोसों दूर था। लेकिन शिवराज ने सत्ता-तंत्र का ऐसा उपयोग किया कि 2008 तक माहौल पूरी तरह बदल चुका था।
चंबल के डकैतों का सफाया, भू-माफियाओं पर कार्रवाई, और जनता से सीधा संवाद—इन तीन बिंदुओं ने जनता का दिल जीत लिया। बीजेपी ने चुनाव जीता, सीटें भले 143 रह गईं, लेकिन शिवराज का करिश्मा साफ दिखा।
2013: विकास, मीडिया मैनेजमेंट और राजनीतिक स्थिरता
2008 के बाद शिवराज ने औद्योगिक विकास को गति दी। पीथमपुर, मंडीदीप जैसे औद्योगिक नगर फिर से जीवंत हुए। सड़कों का जाल बिछाया गया।
मीडिया प्रबंधन में शिवराज का कोई सानी नहीं। सरकार विरोधी खबरें छन-छन कर ही बाहर आतीं। 2013 में बीजेपी फिर से अपने 2003 वाले शिखर पर पहुंच गई।
2018 का झटका और फिर 2020 की वापसी
2018 में शिवराज सरकार बहुमत से जरूर चूक गई, लेकिन खेल खत्म नहीं हुआ था। कांग्रेस की कमज़ोरियों को शिवराज ने समझा और 2020 में सत्ता वापसी का चमत्कार कर दिखाया।
इसके बाद 2023 में फिर से 160 पार, और 2024 में लोकसभा की सभी 29 सीटें बीजेपी की झोली में। यह कोई सामान्य उपलब्धि नहीं थी—यह शिवराज के नेतृत्व की प्रमाणिकता थी।
मोदी गुजरात में, शिवराज मध्यप्रदेश में—दो योद्धा, एक मिशन
नरेंद्र मोदी ने गुजरात में विकास और राजनीतिक चतुराई से कांग्रेस को मिटाया। वही काम मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने किया। अब जब मोदीजी राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं बनेंगे, अमित शाह संगठन को दूर से देखते हैं, तो सवाल उठता है—
क्या अब बीजेपी अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी शिवराज सिंह को नहीं मिलनी चाहिए?
शिवराज की राजनीतिक पूंजी: क्यों हैं सबसे योग्य अध्यक्ष पद के लिए?
• कांग्रेस मुक्त भारत का सबसे बड़ा उदाहरण—मध्यप्रदेश।
• मीडिया मैनेजमेंट और जमीनी कार्यकर्ताओं से संपर्क में विशेषज्ञता।
• केंद्र से लेकर पंचायत तक पार्टी की नब्ज पर पकड़।
• बीजेपी को संकट में संभालने का ट्रैक रिकॉर्ड।
शिवराज अध्यक्ष बने तो कांग्रेस का आखिरी किला भी ढह जाएगा
आज बीजेपी को ऐसा चेहरा चाहिए जो न सिर्फ चुनाव जिताए, बल्कि विपक्ष के बचे-खुचे अस्तित्व को भी खत्म कर दे। शिवराज सिंह चौहान इस मिशन के लिए सबसे सटीक योद्धा हैं।
अगर उन्हें अध्यक्ष बनाया गया, तो यह सिर्फ बीजेपी की नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति की दिशा बदलने वाली घोषणा होगी।
अगर आप भारतीय राजनीति को समझना चाहते हैं, तो शिवराज सिंह चौहान की कहानी आपको नेतृत्व, धैर्य और रणनीति का जीवंत पाठ पढ़ा देगी। क्या अब वो राष्ट्रीय भूमिका में आएंगे? इसका जवाब आने वाले समय में छिपा है, लेकिन संकेत साफ हैं—“शिव ही सुंदर है।”