
18 जुलाई 2012… मुंबई की गर्म दोपहर में जब राजेश खन्ना के निधन की ख़बर आई, पूरे देश ने जैसे अपना कोई अपना खो दिया हो। वो सिर्फ सुपरस्टार नहीं थे — वो भारत में सुपरस्टारडम की परिभाषा गढ़ने वाले पहले अभिनेता थे। लेकिन क्या आपको पता है, इस ग्लैमर के पीछे कितनी गहरी तन्हाई, टूटे रिश्ते, खोया आत्मविश्वास और अंतहीन आत्म-संघर्ष छिपा था?
इस लेख में हम आपको ले चलेंगे एक ऐसे राजेश खन्ना की ओर, जिसे शायद बहुत कम लोग जानते हैं… नखरेबाज़ नहीं, बल्कि अंदर से टूटा हुआ एक कलाकार। ये कहानी है उनके दोस्त और मशहूर पत्रकार अली पीटर जॉन की यादों के ज़रिए।
कॉलेज का ‘काका’ जो बन गया भारत का पहला सुपरस्टार
राजेश खन्ना, उर्फ़ ‘काका’, कॉलेज के दिनों में ही थिएटर में अपनी छाप छोड़ चुके थे। अली पीटर जॉन बताते हैं कि कैसे वो इंटर-कॉलेजिएट कॉम्पिटीशन्स के हीरो हुआ करते थे। के.सी. कॉलेज के इस लड़के ने ‘यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स’ के टैलेंट हंट को जीतकर बॉलीवुड में कदम रखा। बाकियों के पास संघर्ष की कहानियाँ थीं, लेकिन काका के पास एक चमचमाती इंपाला कार और 12 फिल्में करने का कॉन्ट्रैक्ट।
लेकिन सितारे भी ढलते हैं…
फ़्लॉप की मार और ‘अराधना’ की क्रांति
शुरुआत में तीन बड़ी फ़िल्में – आखिरी खत, राज़, और बहारों के सपने… बॉक्स ऑफिस पर ढेर हो गईं। निर्माता कतराने लगे। लेकिन फिर आई ‘अराधना’… एक फिल्म जिसने राजेश खन्ना को ‘राजेश खन्ना’ बना दिया।
पहले दिन थिएटर खाली रहे, लेकिन शाम का शो हाउसफुल हुआ। फिर तो ‘डबल रोल’ वाले इस स्टार ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
स्टारडम का जुनून और टूटते रिश्ते
काका की दीवानगी का आलम ये था कि लड़कियां उनके बंगले के सामने बेहोश हो जाती थीं। उनकी कार लिपस्टिक के निशानों से भर जाती थी। उन्होंने जींस के साथ कुर्ता पहनने का फैशन शुरू किया।
लेकिन जितनी तेज़ी से वो ऊपर चढ़े, उतनी ही तेज़ी से रिश्तों में गिरावट आई।
अंजू महेंद्रू से रिश्ता टूटा। डिंपल कपाड़िया से शादी हुई, लेकिन वो रिश्ता भी टूटा। क्योंकि काका के ईगो और चमचों ने सब कुछ निगल लिया।
डिंपल को हर सुबह उनके दोस्तों की सेवा करनी पड़ती थी… ड्रिंक्स से लेकर डिनर तक। एक दिन वो अपनी बेटियों को लेकर चली गईं। पर काका ने उन्हें कभी दोष नहीं दिया। आखिरी दिनों में माफ़ी मांगी, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।
जब अमिताभ का नाम सुनकर कांप जाते थे ‘काका’
‘नमक हराम’ के बाद अमिताभ बच्चन का उभार देख काका भीतर से हिल गए थे। वो इतने डिप्रेस हो गए कि सुसाइड तक के बारे में सोचने लगे।
उन्होंने अपनी हर फिल्म में अपने लिए मौत के सीन रखने की ज़िद की… क्योंकि उन्हें लगता था, “जो फिल्में मरने वाले सीन के साथ होती हैं, वही हिट होती हैं।”
वो खामोशी हो या सफर, काका मरते रहे… लेकिन असल ज़िंदगी में धीरे-धीरे वो खुद मरते चले गए।
राजनीति में भी आया ठहराव, पर एक बात थी खास…
राजीव गांधी के कहने पर उन्होंने राजनीति जॉइन की, आडवाणी से हारे लेकिन शत्रुघ्न सिन्हा को हराया। पर राजनीति काका के लिए नहीं थी। वो वहां भी नहीं टिक पाए।
हां, उन्होंने पैसा बहुत सही जगह लगाया। बंगले को खुद रेनोवेट कराया। लेकिन लाइमलाइट से दूर, वो खिड़की से बाहर झांकते हुए शाम बिताते थे।
बिग बॉस में जाना चाहते थे, पर किस्मत पलट चुकी थी
कलर्स टीवी ने उन्हें बिग बॉस में आने के लिए 3.5 करोड़ रुपए प्रति एपिसोड ऑफर किया। पहले मना कर दिया, बाद में राज़ी हुए। लेकिन तब चैनल पीछे हट चुका था।
अंतिम संवाद: “अगर ग़ालिब दारू पीकर मर सकता है, तो मैं क्यों नहीं?”
मौत से दो महीने पहले अली पीटर जॉन जब काका से मिलने गए, तो उन्होंने यही कहा। वो शराब में डूब चुके थे, अकेलेपन में डूब चुके थे, और कहीं न कहीं, सब कुछ छोड़ चुके थे।
काका की कहानी क्यों आज भी प्रासंगिक है?
राजेश खन्ना की कहानी हमें ये सिखाती है कि सफलता जितनी ऊंची होती है, उसके साथ गिरने का डर भी उतना ही बड़ा होता है। वो जितने बड़े स्टार थे, उतने ही संवेदनशील इंसान भी।
कभी खुद को भगवान मानने वाले काका, अंत में खुद को माफ़ी मांगते इंसान बन गए।
आज सोशल मीडिया के ज़माने में स्टारडम क्षणिक है, लेकिन राजेश खन्ना का क्रेज़, वो पागलपन… आज भी इतिहास के पन्नों में जिंदा है।
जब सुपरस्टार खुद एक ट्रैजिक हीरो बन जाए…
राजेश खन्ना की कहानी किसी बॉलीवुड स्क्रिप्ट से कम नहीं। जिसमें ग्लैमर है, इमोशन है, रोमांस है, राजनीति है, और अंत में… एक ट्रैजिक मोड़।
लेकिन यही तो है एक सच्चे कलाकार की पहचान। जो अपनी आखिरी सांस तक भी ‘एक सीन’ की तरह जिया।
उनकी बेटियां अब उनके बंगले को ‘राजेश खन्ना म्यूज़ियम’ बनाना चाहती हैं। शायद यही उनकी कहानी को अमर कर दे…
क्योंकि ‘काका’ सिर्फ एक नाम नहीं था — वो एक युग था।
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