
कल्पना कीजिए, एक ऐतिहासिक भारत-पाकिस्तान वेटरन्स क्रिकेट मुकाबला, लीजेंड्स की भिड़ंत, स्टेडियम में हजारों की भीड़, करोड़ों टीवी सेटों पर टकटकी लगाए लोग… लेकिन आख़िरी वक्त पर यह मैच रद्द हो जाता है। क्यों? क्या बारिश आई? क्या कोई तकनीकी खामी हुई?
नहीं।
इस मैच को रद्द करने की वजह थी एक शख्स—शाहिद अफरीदी। एक खिलाड़ी जिसने मैदान के बाहर कुछ ऐसा कर दिया कि भारतीय लीजेंड्स ने मैदान पर उनके खिलाफ उतरने से मना कर दिया।
यह कहानी है क्रिकेट से कहीं ज़्यादा बड़ी। यह कहानी है देशभक्ति बनाम ढोंगी राष्ट्रवाद की, शहीदों के सम्मान बनाम बयानबाज़ी की राजनीति की, और यह कहानी है एक ऐसे खिलाड़ी की जो देश के लिए नहीं, सत्ता के लिए खेलता है।
लीजेंड्स लीग में टकराव से पहले उठता तूफ़ान
वर्ल्ड चैंपियनशिप ऑफ लीजेंड्स…. जहां भारत और पाकिस्तान की दिग्गज टीमें एक बार फिर आमने-सामने आने वाली थीं। क्रिकेट फैंस बेसब्री से इस महामुकाबले का इंतज़ार कर रहे थे। मैदान तैयार था, कैमरे ऑन थे, लेकिन अचानक खबर आई—
भारत बनाम पाकिस्तान मैच रद्द कर दिया गया है।
वजह? भारतीय खिलाड़ी शाहिद अफरीदी के खिलाफ मैदान में उतरना ही नहीं चाहते थे।
22 अप्रैल: एक न भूलने वाला दिन
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में जो हुआ, उसने पूरे देश को झकझोर दिया। 26 निर्दोष लोगों की धर्म पूछकर हत्या कर दी गई। मासूम, बेगुनाह, और बिना किसी जुर्म के सिर्फ हिंदू होने की सजा मिली।
इस जघन्य हत्याकांड के पीछे पाकिस्तान के आतंकियों का हाथ माना गया। जब भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान की भूमिका पर सवाल उठाए, तो शाहिद अफरीदी ने ऐसा बयान दे डाला जिसने करोड़ों भारतीयों को नाराज़ कर दिया।
अफरीदी का बेतुका बयान
शाहिद अफरीदी ने “सबूत दिखाओ” की रट दोहराई। इसके बाद उन्होंने भारतीय सेना पर ही सवाल उठाने शुरू कर दिए। इस वक्त जब पूरा देश शोक में डूबा था, एक पूर्व पाकिस्तानी कप्तान भारत के जख्मों पर नमक छिड़क रहा था।
इस बयान से न सिर्फ लोगों का खून खौला, बल्कि भारतीय क्रिकेट लीजेंड्स ने भी इसे दिल पर ले लिया।
जब जवाब मिला गोली से, और पाकिस्तान ने मनाया जश्न
भारत ने आतंकियों के ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक जैसा एक्शन लिया। लेकिन जवाब में पाकिस्तानी आर्मी ने आम भारतीय नागरिकों को निशाना बनाया।
चौंकाने वाली बात यह थी कि पाकिस्तान में इस पूरे टकराव को जीत का प्रतीक मानते हुए जश्न मनाया गया।
शाहिद अफरीदी ने भी इस जश्न में हिस्सा लिया। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने अफरीदी को “भारत-पाक युद्ध में योगदान” के लिए एक शील्ड देकर सम्मानित किया।
यहां एक बड़ा सवाल उठता है—एक क्रिकेटर जो खेल को युद्ध में बदल दे, क्या उसे खेल के मैदान में जगह दी जानी चाहिए?
“यौम-ए-तशकुर” में अफरीदी का रोल: देशभक्ति या राजनीतिक पाखंड?
पाकिस्तान सरकार द्वारा आयोजित यौम-ए-तशकुर यानी ‘आभार दिवस’ में हजारों समर्थक जुटे। अफरीदी वहां मौजूद थे, प्रधानमंत्री से गले मिलते हुए, सेना के लिए अपना समर्थन जताते हुए।
लेकिन एक क्रिकेटर का असली धर्म क्या होता है? खेलना या राजनीति करना?
यह सवाल अब भारतीय खिलाड़ियों के मन में गूंजने लगा।
भारतीय लीजेंड्स ने जो किया, वह सिर्फ क्रिकेट नहीं था, वह था चरित्र
मैच रद्द हुआ, लाखों फैंस को निराशा हुई। लेकिन भारतीय लीजेंड्स ने यह दिखा दिया कि देश की अस्मिता और वीरों के सम्मान से बढ़कर कोई खेल नहीं होता।
“हम उस खिलाड़ी से नहीं खेल सकते जो हमारे शहीदों का अपमान करता हो।”
यह संदेश दुनिया भर में गया। खेल सिर्फ मनोरंजन नहीं है, वह मूल्यों की लड़ाई भी है।
निष्कर्ष: एक न खेला गया मैच, जिसने देशभक्ति की जीत लिखी
जब भारतीय खिलाड़ियों ने शाहिद अफरीदी के खिलाफ खेलने से इनकार किया, तो उन्होंने सिर्फ एक मैच नहीं छोड़ा, बल्कि अपने राष्ट्र और उसकी आत्मा के प्रति अपनी निष्ठा जताई।
ये कोई सामान्य निर्णय नहीं था। ये एक विचारधारा के खिलाफ आवाज़ थी। ये उन मासूमों की याद में एक मौन श्रद्धांजलि थी, जिन्हें पहलगाम में बेरहमी से मारा गया।
शाहिद अफरीदी की राजनीतिक नज़दीकियां और बेतुके बयानों ने उन्हें क्रिकेट से ज़्यादा एक विवाद का चेहरा बना दिया है। और भारतीय खिलाड़ियों ने दिखा दिया कि वे सिर्फ बल्ले और गेंद से ही नहीं, संवेदनाओं और सच्चाई से भी खेलते हैं।