
भूमिका: जब मंच पर उतरता है एक जादूगर…
एक भीड़भरे स्टूडियो में जैसे ही लाइट्स ऑन होती हैं और कैमरे रिकॉर्डिंग शुरू करते हैं, एक नाम ऐसा है जो दर्शकों की आँखों में चमक और होठों पर मुस्कान ले आता है – सुनील ग्रोवर। वो महज़ एक कॉमेडियन नहीं, एक कलेवर हैं जो हर किरदार में जान फूंक देते हैं।
चाहे वो ‘गुत्थी’ हो या ‘डॉ. मशहूर गुलाटी’, सुनील के पात्र केवल हास्य नहीं गढ़ते, वे एक पूरा अनुभव बन जाते हैं।
लेकिन सवाल ये उठता है, क्या कपिल शर्मा शो से अलग होने पर भी सुनील उतना ही प्रभावशाली रह सकते हैं? क्या ओटीटी प्लेटफॉर्म्स, जैसे Netflix, उन्हें उसी भरोसे से साइन करेंगे?
आइए, इस सवाल का जवाब खोजने के लिए चलते हैं एक ऐसे सफर पर, जहाँ मिमिक्री सिर्फ मज़ाक नहीं बल्कि एक कला की पूजा बन जाती है।
सुनील ग्रोवर: किरदार नहीं, कैरेक्टर आर्टिस्ट की आत्मा
कहते हैं, “एक सच्चा कलाकार वो है जो चेहरे नहीं, भावनाएं बदलता है।”
सुनील ग्रोवर जब मंच पर उतरते हैं तो चेहरे पर मास्क नहीं, आत्मा पर किरदार चढ़ा होता है।
मिमिक्री: सुनील की सबसे धारदार तलवार
हाल ही में, जब अजय देवगन ‘सन ऑफ सरदार 2’ के प्रमोशन के लिए शो में आए, तो सुनील ग्रोवर ने न केवल अजय की हूबहू नकल की बल्कि दारा सिंह की भी अद्भुत मिमिक्री कर सबको स्तब्ध कर दिया।
पंजाबी एक्सेंट हो या हरियाणवी ठसक। सुनील की जबान और अदाएं इतनी परिपक्व होती हैं कि आपको यकीन नहीं होता कि ये केवल एक्टिंग है।
हर डायलॉग पर तालियाँ, हर हाव-भाव पर ठहाके। यही है सुनील का करिश्मा।
वो 5 कारण, जो सुनील ग्रोवर को कॉमेडी का बेताज बादशाह बनाते हैं:
1. वैरायटी में मास्टरी
गुत्थी, डॉ. गुलाटी, ऋषी-फकीर, बूढ़े बाबा… हर रोल में अलग रंग, अलग शरीर-भाषा।
कोई दो किरदार एक जैसे नहीं लगते।
2. डायलॉग डिलीवरी का सिंक्रोनाइज़ेशन
कॉमिक पंच सुनील के लिए संवाद नहीं, गोलियों की तरह दागे गए पंचलाइन होते हैं। टाइमिंग ऐसी कि हँसी छूटती नहीं फटती है।
3. एक्सेंट पर कमाल का कंट्रोल
चाहे पंजाबी हो या बॉलीवुड के स्टार्स उनका लहजा सिर्फ कॉपी नहीं होता, बल्कि उसकी आत्मा उतर आती है।
4. कॉमेडी में इम्प्रोवाइजेशन का बादशाह
स्क्रिप्ट से परे जाकर सुनील जो जोड़ते हैं, वही शो को जिंदा बनाता है। बिना ओवरडू किए, माहौल में जान भर देते हैं।
5. कम स्क्रीन टाइम में मैक्स इम्पैक्ट
शायद सुनील को हर एपिसोड में पूरी जगह नहीं मिलती, लेकिन जब भी आते हैं, छा जाते हैं।
मगर, क्या इतने हुनर के बाद भी सुनील को बराबरी का मंच मिल रहा है?
यह सवाल परेशान करता है।
सुनील ग्रोवर के पास परफॉर्मिंग आर्ट की गहराई है, लेकिन क्या इंडस्ट्री उन्हें पूरी उड़ान दे पा रही है?
नेटफ्लिक्स जैसे प्लेटफॉर्म्स अभी भी ‘सेफ’ गेम खेलते हैं। नए एक्सपेरिमेंट्स, नए कॉमिक सेंट्रिक शो को चांस कम ही मिलता है।
अगर कपिल शर्मा शो से सुनील अलग हो जाएं, तो शायद अगला प्रोजेक्ट मिलना इतना आसान न हो, क्योंकि इंडस्ट्री चेहरे पर भरोसा करती है, परफॉर्मेंस पर नहीं।
सुनील ग्रोवर: अकेला लेकिन अग्नि-पथ पर
हमारे देश में कलाकारों को तब तक नहीं पहचाना जाता, जब तक वे स्टेज से उतर न जाएं।
सुनील ग्रोवर को देखकर यही एहसास होता है कि उनमें एकल यात्रा करने की क्षमता है, मगर उनकी प्रतिभा को सही मौके की जरूरत है।
वो अपनी कॉमेडी से समाज का आईना बन सकते हैं।
ओटीटी प्लेटफॉर्म्स अगर उन्हें सोलो स्पेस दें, तो सुनील एक अलग कॉमेडी ब्रह्मांड रच सकते हैं।
निष्कर्ष: सुनील ग्रोवर सिर्फ कॉमेडियन नहीं, एक संभावनाओं की सदी हैं
कपिल शर्मा शो में सुनील ग्रोवर की मौजूदगी शो की कॉमिक रचनात्मकता का मेरुदंड है।
मगर यदि वे अलग होते हैं, तो शो भले ना रुके लेकिन उसकी आत्मा में कुछ खालीपन ज़रूर आ जाएगा।
सुनील ग्रोवर सिर्फ हँसी नहीं बाँटते, वो अभिनय की उस विधा का प्रतिनिधित्व करते हैं जहाँ मिमिक्री एक आध्यात्मिक अभ्यास बन जाता है। उन्हें ज़रूरत है एक ऐसे मंच की, जो उनके हर रूप को स्वीकारे और उन्हें सिर्फ़ सपोर्टिंग रोल में ना बाँधे।