
PM Keir Starmer and PM Narendra Modi - India-UK Trade Deal 2025
“एक वैज्ञानिक, एक झूठ, और एक अवचेतन देश…”
कल्पना कीजिए एक वैज्ञानिक अपने जीवन के सबसे बड़े मिशन पर है। देश को आत्मनिर्भर बनाना चाहता है, क्रायोजेनिक तकनीक से भारत को अंतरिक्ष महाशक्ति बनाने की तैयारी में दिन-रात जुटा है। लेकिन ठीक उसी साल, एक साजिश रचाई जाती है। वो वैज्ञानिक जेल में डाल दिया जाता है। उसका करियर तबाह कर दिया जाता है। और भारत का सपना… सालों पीछे चला जाता है।
ऐसा ही कुछ हुआ था 1994 में नंबी नारायणन के साथ। और आज, जब भारत फिर आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर है, तब भी कुछ न कुछ घटनाएं वैसी ही हो रही हैं।
लेकिन इस बार तरीके बदल चुके हैं, अब जेल नहीं, अब सोशल मीडिया है।
नंबी नारायणन: एक वैज्ञानिक, एक साजिश, एक खोया सपना
भारत का पहला क्रायोजेनिक इंजन
1994 में नंबी नारायणन ने भारत का पहला क्रायोजेनिक इंजन तैयार कर दिया था। अगर यह तकनीक सफलतापूर्वक लागू हो जाती, तो भारत को पश्चिमी देशों पर रॉकेट तकनीक के लिए निर्भर नहीं रहना पड़ता।
और उसी साल… देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार
अचानक, उस साल उनके खिलाफ देशद्रोह के आरोप लगाए गए। उन्हें जेल में डाल दिया गया, केस चले, कोर्ट-कचहरी हुई, और आखिरकार सालों बाद निर्दोष साबित हुए।
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। न केवल उनका वैज्ञानिक करियर बर्बाद हुआ, बल्कि भारत की अंतरिक्ष प्रगति भी कई साल पीछे चली गई।
क्या यह केवल संयोग था? या फिर जब-जब भारत आत्मनिर्भर बनने की कोशिश करता है, तभी कोई षड्यंत्र जन्म लेता है?
सूचना नहीं, भ्रम फैलाने वाला युग है यह
41 करोड़ की कमाई: एक सोशल मीडिया अफवाह
हाल ही में एक खबर आई कि एक सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर ने एक महीने में 41 करोड़ रुपये कमा लिए। देखते ही देखते इस खबर ने सोशल मीडिया पर आग की तरह फैलना शुरू कर दिया।
लोगों ने नौकरी छोड़ने के प्लान बनाने शुरू कर दिए। और फिर चार दिन बाद वही इनफ्लुएंसर बोली –
“ये खबर फर्जी है।”
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जिन्होंने पहली खबर देखी थी, उनके अवचेतन मन में वह ‘सच’ बन चुकी थी। उन्होंने झूठ को आगे फैलाया, और यह झूठ समाज का हिस्सा बन गया।
बचपन की सीख, आज की सीख
माँ कहती थी, “किसी से कुछ खाने को मिले तो मत खाना।”
अब भी वही बात है — “किसी से कुछ सुनो, तो आँख बंद कर मत मान लेना।”
आज मिसइन्फॉर्मेशन, यानी गलत जानकारी, इतनी फैली है कि सच को पहचान पाना ही मुश्किल हो गया है।
भारत जब आगे बढ़ता है, तब क्यों रुक जाता है?
जैसे ही भारत जापान से आगे निकला…
छह महीने पहले खबर आई कि भारत ने GDP में जापान को पीछे छोड़ दिया है।
सिर्फ कुछ दिन बाद —
• ट्रेन हादसे शुरू हो गए,
• पहलगाम में हमला हुआ,
• युद्ध जैसे हालात बनने लगे।
इतना ही नहीं, भारतीय ही सोशल मीडिया पर लिखने लगे —
“जापान की ट्रेन देखो और भारत की ट्रेन देखो!”
जबकि GDP का रेलवे से कोई लेना देना नहीं है, लेकिन लोगों का अवचेतन मन पहले से तैयार था – “अगर देश आगे बढ़ेगा तो कोई न कोई बड़ी असुविधा ज़रूर होगी।”
यह सिर्फ संयोग नहीं, यह “पैटर्न” है
ब्रिटेन-भारत डील दब गई क्योंकि…
हाल ही में भारत और ब्रिटेन के बीच एक ऐतिहासिक फ्री ट्रेड डील साइन हुई। लेकिन राजस्थान में हुई एक दुर्घटना ने उस खबर को मीडिया से हटा दिया। दुर्घटना दुखद थी, लेकिन भारत की वैश्विक छवि को उभारने वाली डील की चर्चा को जानबूझकर दबाया गया।
हादसा हथियार बना दिया गया
लोग कहने लगे — “ट्रेड डील का क्या करोगे, यहाँ बच्चे मर रहे हैं।”
लेकिन सच्चाई यह है कि यह दो अलग-अलग घटनाएं हैं। एक देश की आर्थिक सफलता की और
दूसरी स्थानीय प्रशासन की विफलता की ।
सोशल मीडिया और अवचेतन राष्ट्र
अमीरी से डरते हैं?
आज के युवा, जो UPSC की तैयारी में बाल सफेद कर रहे हैं, वे डेटा साइंस, AI, और मशीन लर्निंग से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं।
क्यों?
क्योंकि सोशल मीडिया ने उनकी सोच इस तरह ढाल दी है कि जब भी वे सफलता, धन या विकास की बात सुनते हैं, तो उसे शक की नजरों से देखते हैं।
अमेरिका, चीन और भारत का फर्क
• अमेरिका अमीर हुआ क्योंकि उसने अपने उद्योगपतियों को नीचा नहीं दिखाया,
• चीन आज भी समस्याओं से जूझ रहा है, लेकिन वह कभी अपनी आर्थिक छवि पर चोट नहीं करता,
• लेकिन भारत में, चाहे वो अडानी ग्रुप की नीलामी हो या ISRO का मिशन, जैसे ही कोई बड़ी जीत मिलती है, उसी वक्त नकारात्मकता की लहर दौड़ा दी जाती है।
आत्म-अपमान की मानसिकता
भारत के लोग एक अद्भुत मानसिक बीमारी से पीड़ित हैं –
“आत्म-अपमान का सुलेमानी कीड़ा”।
कभी किसी हादसे को उठाकर, कभी किसी अरबपति को खलनायक बनाकर,
हम अपना ही राष्ट्रीय मनोबल गिरा देते हैं।
कट्टर हो या उदार, हिंदू हो या मुसलमान, सभी वर्ग एक ही दिशा में सोचते हैं —
“भारत क्यों सफल हो रहा है?” की बजाय “भारत को असफल कैसे दिखाएं?”
Conclusion: भारत बनाम भारत का अवचेतन
आज की सबसे बड़ी लड़ाई भारत और भारत के अवचेतन मन के बीच है।
जब तक हम अपनी जानकारी का स्रोत सोशल मीडिया बनाए रखेंगे,
जब तक हम किसी भी खबर को बिना जाँचे सच मानते रहेंगे,
जब तक हम हर सकारात्मक खबर को नकारात्मक लेंस से देखते रहेंगे, तब तक भारत कभी सशक्त नहीं बन पाएगा।
हम सबके हाथ में है की हम अपने देश को आगे बढ़ता हुआ देखना चाहते हैं या भ्रम और अफवाहों में जकड़ा हुआ?