
कल्पना कीजिए एक ऐसे सैनिक की, जो देश की सीमा पर खड़ा है… सिर पर बर्फ़बारी, हाथ में 30 साल पुरानी राइफल, और दिल में एक ही सवाल — “क्या मैं इस राइफल पर पूरी तरह भरोसा कर सकता हूं?”
भारतीय सेना दशकों तक ऐसी ही स्थिति में रही। दुनिया तेज़ी से नई-नई टेक्नोलॉजी अपनाती रही, लेकिन भारत के जवान अब भी पुरानी, भरोसेमंद लेकिन थक चुकी इंसास (INSAS) जैसी राइफलों के भरोसे लड़ते रहे। यह सिर्फ एक तकनीकी मुद्दा नहीं था, यह एक राष्ट्रीय सुरक्षा का संकट था।
हमारी पुरानी लड़ाई: एक बेहतरीन असॉल्ट राइफल की तलाश
जब से मैंने डिफेंस मामलों को पढ़ना शुरू किया, एक बात बार-बार सामने आती रही — “भारत के पास अपनी कोई आधुनिक असॉल्ट राइफल नहीं है।”
हां, कुछ नई राइफलें थीं जो विदेशों से सीधे मंगाई जाती थीं (Off-the-shelf imports), लेकिन वो सिर्फ कुछ ख़ास यूनिट्स को ही मिलती थीं। क्यों? क्योंकि वे महंगी थीं, मिशन-विशिष्ट थीं, और उनकी सर्विसिंग और स्पेयर पार्ट्स युद्धकाल में एक बड़ा सिरदर्द बन सकती थीं।
अब ज़रा सोचिए…. युद्ध की स्थिति हो, आपके पास बंदूक तो हो लेकिन उसकी गोलियां या कलपुर्जे उपलब्ध न हों। यह सिर्फ़ तकनीक की समस्या नहीं है, यह आत्मनिर्भरता की हार है।
फिर आया ‘मेक इन इंडिया’ और बदल गई तस्वीर
सरकार और सेना ने मिलकर इस गहरी समस्या को समझा। फिर एक ऐतिहासिक कदम उठाया गया। Indo-Russian Rifles Private Limited (IRRPL) नाम की एक संयुक्त कंपनी बनाई गई। भारत और रूस के इस जॉइंट वेंचर ने एक ऐसा सपना देखा, जो अब हकीकत बन रहा है — AK-203 असॉल्ट राइफल का भारत में निर्माण।
AK-203, दुनिया की सबसे भरोसेमंद और घातक राइफलों में से एक, अब भारत में बनेगी — और वह भी 100% भारतीय टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के साथ।
अमेठी: जहाँ ‘शेर’ का जन्म हुआ
उत्तरप्रदेश के अमेठी में बना यह प्लांट अब भारतीय सेना की रीढ़ बनने जा रहा है। यहीं पर ‘AK-203 शेर’ का निर्माण हो रहा है। जी हां, ‘शेर’। यही नाम दिया गया है भारत में बनी इस राइफल को।
2024 तक 48,000 राइफलें सेना को सौंपी जा चुकी हैं, और 22,000 और राइफलें अगले कुछ हफ्तों में दी जाएंगी। लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह नहीं है।
जो कभी असंभव लगता था, भारत ने वो कर दिखाया
भारतीय सेना को कुल 6 लाख AK-203 राइफल मिलनी हैं। इसकी डिलीवरी की तय समय-सीमा थी दिसंबर 2032। लेकिन इंडो-रशियन राइफल्स प्राइवेट लिमिटेड ने जो किया, वह भारतीय रक्षा इतिहास में एक मील का पत्थर है।
यह पूरा आर्डर दिसंबर 2030 तक पूरा हो जाएगा, यानी दो साल पहले। यह उस देश में हो रहा है जहां रक्षा सौदों में डिलीवरी आमतौर पर तीन साल लेट होती है। ऐसे में यह सिर्फ़ एक रिकॉर्ड नहीं, विश्वास की वापसी है।
AK -203 सिर्फ़ हमारी ही रक्षा नहीं करेगा, बल्कि दुनिया को भी भारत की ताकत दिखाएगा
भारत अब सिर्फ़ AK-203 अपने लिए नहीं बनाएगा, बल्कि इसका निर्यात (Export) भी करेगा। इससे सिर्फ़ विदेशी मुद्रा आएगी ऐसा नहीं, बल्कि भारत एक रक्षा तकनीकी शक्ति के रूप में स्थापित होगा।
अब भारतीय सैनिकों के हाथों में होगी ऐसी बंदूक जो
— 800 मीटर की रेंज और 700 गोलियों प्रति मिनट की फायरिंग क्षमता इस राइफल को अपराजेय बनाती है।
— इसका वजन लगभग 3.8 किलोग्राम है और इसमें 30 राउंड की डिटेचेबल बॉक्स मैगजीन है
— तीव्र गति से फायर करती है (Rapid Fire)
— किसी भी मौसम और इलाक़े में काम करती है
— लंबे समय तक टिकाऊ है
— और सबसे बड़ी बात — भारत में बनी है और भारत के लिए बनी है ।
अब कोई भारतीय सैनिक बिना भरोसे के सीमा पर नहीं खड़ा होगा
AK-203 ‘शेर’ एक बंदूक भर नहीं है। यह एक प्रतीक है…. आत्मनिर्भर भारत का, तकनीकी क्रांति का और जवानों के विश्वास का।
यह वो कहानी है जिसमें भारत ने खुद को साबित किया… न केवल एक उपभोक्ता के तौर पर, बल्कि एक सृजनकर्ता के तौर पर।
अब जब भी कोई जवान सीमा पर खड़ा होगा, उसके हाथ में होगी एक ‘शेर’, जो उसे सिर्फ़ गोली चलाने की नहीं, देश के स्वाभिमान की शक्ति भी देगा।
🇮🇳 जय हिन्द।