
परिचय: अर्जेंटीना क्यों बना सुर्खियों का केंद्र?
हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अर्जेंटीना यात्रा ने दुनियाभर के कूटनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। 57 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद भारत का कोई प्रधानमंत्री अर्जेंटीना की धरती पर कदम रख रहा है। इस दौरे ने न केवल भारत-अर्जेंटीना संबंधों को नई ऊँचाइयाँ दी हैं, बल्कि भारत की वैश्विक रणनीति में एक नई ऊर्जा भी भरी है।
अर्जेंटीना को अब तक हम लियोनेल मेसी और फुटबॉल से जोड़ते थे, लेकिन आज यह देश भारत के लिथियम सुरक्षा और यूएनएससी सुधार एजेंडा में एक बड़ा खिलाड़ी बनकर उभर रहा है। आइए इस ऐतिहासिक यात्रा और उसके रणनीतिक आयामों को आसान भाषा में समझते हैं।
भारत-अर्जेंटीना संबंध: दोस्ती से आगे की कहानी
अर्जेंटीना एक मित्रवत देश है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसकी पोजिशनिंग भारत के लिए चुनौती बनती रही है। वह UFC (Uniting for Consensus) समूह का सदस्य है—एक ऐसा संगठन जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थायी सदस्यों के विस्तार का विरोध करता है। इस समूह में पाकिस्तान, तुर्की, कनाडा, इटली, और साउथ कोरिया जैसे देश भी शामिल हैं।
UFC की आपत्तियाँ विभिन्न कारणों से जुड़ी होती हैं—जैसे अर्जेंटीना का डर कि ब्राज़ील, जो उसका क्षेत्रीय प्रतिद्वंदी है, अगर स्थायी सदस्य बन गया, तो शक्ति संतुलन बिगड़ सकता है। हालांकि यह भारत विरोध नहीं है, लेकिन भारत की स्थायी सदस्यता की राह में यह एक बाधा जरूर है।
भारत की लिथियम डिप्लोमैसी: क्यों अहम है अर्जेंटीना?
भारत सरकार ने हाल ही में घोषणा की है कि अर्जेंटीना के लिथियम भंडार में भारत गहरी रुचि रखता है। लिथियम आयन बैटरियां जो इलेक्ट्रिक वाहनों और ऊर्जा भंडारण के लिए आवश्यक हैं, उनके लिए यह धातु बेहद जरूरी है।
लेकिन जब भारत के जम्मू-कश्मीर में लिथियम मिला है, तो अर्जेंटीना क्यों?
क्योंकि जम्मू-कश्मीर में लिथियम की मौजूदगी क्ले डिपॉज़िट फॉर्म में है, जिसे निकालना बहुत खर्चीला और तकनीकी रूप से जटिल है। वहीं दूसरी ओर, अर्जेंटीना में लिथियम का खनन व्यावसायिक रूप से सरल और सस्ता है। भारत वहां की कंपनियों के साथ मिलकर लिथियम का आयात और प्रोसेसिंग करना चाहता है।
भू-राजनीतिक ऊर्जा रणनीति: भारत का पाँच देशों का मिनरल मिशन
पीएम मोदी की इस यात्रा का मूल उद्देश्य सिर्फ दोस्ती नहीं, बल्कि ऊर्जा और खनिज सुरक्षा है। आइए देखें, ये पाँच देश भारत के लिए कितने अहम हैं:
• नामीबिया: दुनिया के 11% यूरेनियम का स्रोत।
• अर्जेंटीना: दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा लिथियम रिज़र्व, साथ ही शेल गैस और तेल।
• घाना: अफ्रीका का लिथियम हब।
• त्रिनिदाद एंड टोबैगो: हाइड्रोकार्बन भंडार से भरपूर।
• ब्राज़ील: रक्षा और तकनीक में भारत का रणनीतिक सहयोगी।
यह यात्रा भारत को भविष्य की वैश्विक शक्तियों की कतार में लाने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है।
रक्षा सहयोग: भारत अर्जेंटीना के लिए मेंटेनेंस पार्टनर बन सकता है
भारत ने अर्जेंटीना को एक खास रक्षा प्रस्ताव दिया है—उसके हेलिकॉप्टर फ्लीट की मेंटेनेंस भारत में की जाए। दक्षिण अमेरिका में दुर्गम भूगोल के कारण हेलिकॉप्टर्स की अहम भूमिका होती है। यह लॉजिस्टिक साझेदारी भारत को अर्जेंटीना के रक्षा ढांचे में एक भरोसेमंद सहयोगी बना सकती है।
ब्रह्मोस मिसाइल की डील?
अर्जेंटीना भारत की ब्रह्मोस मिसाइल समेत अन्य रक्षा उपकरण खरीदने में भी रुचि दिखा चुका है। यह संकेत है कि भारत अब एक “एक्सपोर्टिंग डिफेंस पावर” की भूमिका में आ चुका है।
निष्कर्ष: क्या अर्जेंटीना भारत का रणनीतिक मित्र बन पाएगा?
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की राह आज भी कठिन है, लेकिन अर्जेंटीना जैसे देशों के साथ विश्वास पर आधारित रिश्ते इस राह को आसान बना सकते हैं। लिथियम, रक्षा, तकनीक और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में सहयोग भारत और अर्जेंटीना के रिश्तों को एक नई ऊंचाई तक ले जा सकता है।
भारत को यह संदेश देना होगा कि वह एक शांतिप्रिय, दीर्घकालिक और भरोसेमंद साझेदार है। और जब रिश्ते विश्वास से बनते हैं, तो भविष्य में यूएनएससी में भारत की सीट भी कोई असंभव सपना नहीं रह जाएगा।