
आशीष विंस्टन ज़ैदी - मैदान पर तेज़ गेंदबाज़ और मैदान के बाहर स्टाइलिश और आत्मविश्वासी शख़्सियत।
एक सितारा, जिसे आसमान छूने का मौका ही नहीं मिला
भारत में तेज़ गेंदबाज़ी का इतिहास हमेशा आसान नहीं रहा। 80 और 90 के दशक में जब भारतीय पिचें सूखी और ‘पाटा विकेट’ कही जाती थीं, उस दौर में तेज़ गेंदबाज़ सिर्फ नाम के होते थे। जावागल श्रीनाथ जैसे कुछ ही खिलाड़ी तेज़ गेंदबाज़ी का बोझ उठाते थे।
इसी दौर में उत्तर प्रदेश से एक नाम उभरा… आशीष विंस्टन ज़ैदी। एक ऐसा गेंदबाज़ जिसकी गेंद “घूमती नहीं, झूमती” थी, और जो बल्लेबाज़ों के पैरों में कहर बनकर टूटती थी। लेकिन किस्मत ने उनके साथ ऐसा खेल खेला कि 18 साल के करियर में उन्होंने 427 प्रथम श्रेणी विकेट लिए, फिर भी भारत के लिए एक भी अंतरराष्ट्रीय मैच नहीं खेल पाए।
कानपुर के ट्रायल से शुरू हुई कहानी
1988 में, न्यूजीलैंड का दौरा और भारत की पुरानी समस्या… तेज़ गेंदबाज़ों की कमी। उसी साल कानपुर के एक ट्रायल में एक 17 साल का लड़का गेंदबाज़ी कर रहा था, जिसकी गेंदें बल्लेबाज़ों को हिला रही थीं। लेकिन चयनकर्ताओं के लिए वह “अभी कच्चा” था।
उन्हें कहा गया पहले अंडर-19 खेलो, रणजी खेलो, और MRF पेस फाउंडेशन में ट्रेनिंग लो। ज़ैदी ने तीनों काम किए। पाकिस्तान के खिलाफ अंडर-19 मैचों में उन्होंने बासित अली और मोइन खान जैसे बल्लेबाज़ों को पवेलियन भेजा। रणजी में वह लगातार खेलते रहे और MRF से गेंद को “ताड़ी पिलाना” सीखा।
चयनकर्ताओं की बेरुखी और टूटते सपने
1988-89 से लेकर 2006-07 तक ज़ैदी ने बेमिसाल प्रदर्शन किया। 1999-2000 सीजन में विदर्भ के खिलाफ उन्होंने 45 रन देकर 9 विकेट लिए। पूरे सीजन में 49 विकेट लेकर वह चर्चा में आ गए। सभी को उम्मीद थी कि अब उनका टीम इंडिया में चयन तय है, लेकिन चयन समिति के दरवाज़े उनके लिए कभी खुले ही नहीं।
श्रीनाथ, सुब्रोतो बनर्जी, राजदान, जडेजा, मोंगिया जैसे खिलाड़ी आगे निकल गए, लेकिन ज़ैदी सिर्फ देखते रहे।
रणजी का सपना और आखिरी उपलब्धि
क्रिकेट में कहा जाता है की “जब देश से मायूस हो जाओ, तो प्रदेश पर दिल लगाओ।” आशीष ने भी यही किया। सालों तक रणजी में पसीना बहाने के बाद 2005-06 में उत्तर प्रदेश ने मुहम्मद कैफ़ की कप्तानी में रणजी ट्रॉफी जीती। ज़ैदी को सिर्फ एक विकेट मिला, लेकिन ट्रॉफी उठाने का सपना पूरा हुआ। अगले सीजन के बाद उन्होंने क्रिकेट को अलविदा कह दिया… 110 प्रथम श्रेणी मैच, 378 विकेट और अनगिनत अधूरे सपने छोड़कर।
क्यों नहीं मिला टीम इंडिया में मौका?
आशीष विंस्टन ज़ैदी की कहानी यह दिखाती है कि भारतीय क्रिकेट में चयन सिर्फ आंकड़ों पर नहीं, बल्कि राजनीति, समय और भाग्य पर भी निर्भर करता है। अगर वह आज के दौर में होते, हरी-भरी पिचों पर खेलते, तो शायद उनके विकेट 600 के पार होते और भारत के लिए कई टेस्ट खेलते।
क्रिकेट का कड़वा सच
यह कहानी हमें बताती है कि सिर्फ टैलेंट काफी नहीं। सिस्टम, सही समय और सही लोगों का भरोसा भी ज़रूरी है। आशीष ने कभी हार नहीं मानी, लेकिन सेलेक्टर्स की नज़र में वह कभी “सही समय पर सही खिलाड़ी” नहीं बने।
एक हंसता हुआ दर्द
जब वह उत्तर प्रदेश टीम के मैनेजर बने और मुंबई में पिच देखने गए, सचिन तेंदुलकर ने मजाक में कहा – “फिर आ गया तू?”
ज़ैदी ने हंसकर जवाब दिया – “नहीं भाई, मेरा तो हो गया।”
शायद इस जवाब में जितना दर्द था, उतना ही गर्व भी।
निष्कर्ष
आशीष विंस्टन ज़ैदी की कहानी भारतीय क्रिकेट के भूले हुए पन्नों में दर्ज है। यह एक ऐसे खिलाड़ी की कहानी है जिसने कभी अपने सपनों से समझौता नहीं किया, लेकिन सिस्टम ने उन्हें वह मुकाम नहीं दिया जिसके वह हकदार थे। आज के उभरते क्रिकेटरों के लिए यह कहानी एक सीख है की मैदान पर जितनी मेहनत जरूरी है, उतना ही जरूरी है सही समय पर सही जगह पर होना।
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प्रश्न: आशीष विंस्टन ज़ैदी कौन थे और उन्होंने भारत के लिए क्यों नहीं खेला?
उत्तर: आशीष विंस्टन ज़ैदी उत्तर प्रदेश के तेज़ गेंदबाज़ थे, जिन्होंने 18 साल के करियर में 427 प्रथम श्रेणी विकेट लिए। बावजूद इसके, चयनकर्ताओं की अनदेखी और उस दौर की पिचों के कारण उन्हें कभी भारत के लिए खेलने का मौका नहीं मिला।
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FAQ Section
Q1: आशीष विंस्टन ज़ैदी ने कितने विकेट लिए?
A1: उन्होंने 110 प्रथम श्रेणी मैचों में 378 विकेट लिए, और रणजी क्रिकेट में 427 विकेट का आंकड़ा पार किया।
Q2: उन्होंने भारत के लिए क्यों नहीं खेला?
A2: चयनकर्ताओं की अनदेखी, उस दौर की सूखी पिचें और क्रिकेट राजनीति के कारण उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मौका नहीं मिला।
Q3: उनका सबसे बेहतरीन प्रदर्शन कौन सा था?
A3: 1999-2000 में विदर्भ के खिलाफ 45 रन देकर 9 विकेट लेना उनका करियर का यादगार प्रदर्शन है।
Q4: उन्होंने क्रिकेट से कब संन्यास लिया?
A4: 2006-07 सीजन के बाद उन्होंने संन्यास की घोषणा की।