
भारत और अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव और रणनीतिक टकराव का प्रतीकात्मक चित्रण। PC: AI
भारत आज दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, लेकिन यहां तक पहुंचने का सफर आसान नहीं था। दशकों से अमेरिका ने कभी आर्थिक टैरिफ, कभी सैन्य प्रतिबंध, तो कभी पाकिस्तान को खुला समर्थन देकर भारत को रोकने की कोशिश की। इसके बावजूद, भारत ने हर चुनौती का जवाब अपनी सीक्रेट स्ट्रैटेजी से दिया, वो भी बिना ज्यादा शोर मचाए।
इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि कैसे भारत ने अमेरिकी दबाव की हर चाल को पलटकर उसे अपने फायदे में बदला।
अमेरिका-भारत रिश्तों की शुरुआत और पाकिस्तान का खेल
दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया अमेरिका और सोवियत संघ के दो खेमों में बंट गई। भारत ने गुटनिरपेक्ष नीति अपनाई, लेकिन पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने जल्दी ही अमेरिका का साथ चुन लिया। 1947 में जिन्ना ने अमेरिकी अधिकारियों से कहा—
“हिंदू साम्राज्यवाद को रोकने के लिए पाकिस्तान का बनना जरूरी है।”
अमेरिका को दक्षिण एशिया में एक सैन्य बेस चाहिए था, और पाकिस्तान ने खुद को इस भूमिका में पेश कर दिया। 1954 में SEATO और 1955 में CENTO जैसे सैन्य गठबंधन बने। आधिकारिक तौर पर ये सोवियत संघ को रोकने के लिए थे, लेकिन असली टारगेट भारत ही था।
अमेरिकी मदद पाकिस्तान के लिए, मुश्किलें भारत के लिए
• 1955 से 1970 के बीच अमेरिका ने पाकिस्तान को आज के हिसाब से ₹18 लाख करोड़ की मदद दी।
• ₹34,000 करोड़ से ज्यादा सीधे सैन्य सहायता थी।
• यही हथियार 1965 की जंग में भारत के खिलाफ इस्तेमाल हुए।
1971 के बांग्लादेश युद्ध के दौरान, जब लाखों शरणार्थी भारत आए और भारतीय सेना ने मुक्तिवाहिनी की मदद की, तब अमेरिका ने पाकिस्तान का साथ दिया और परमाणु हथियारों से लैस सातवां नौसेना बेड़ा बंगाल की खाड़ी भेजा। यह भारत पर सीधा दबाव था।
भारत के परमाणु कार्यक्रम पर रोक, लेकिन पाकिस्तान पर नरमी
1974 में भारत ने पहला परमाणु परीक्षण ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा किया। अमेरिका भड़क गया, भारत पर प्रतिबंध लगा दिए और NSG (Nuclear Suppliers Group) बनवाया ताकि भारत को परमाणु तकनीक न मिले।
लेकिन पाकिस्तान के गुप्त परमाणु हथियार कार्यक्रम को नजरअंदाज किया गया। 1985-1990 के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति हर साल कांग्रेस को झूठा सर्टिफिकेट देते रहे कि पाकिस्तान परमाणु हथियार नहीं बना रहा है, जबकि अमेरिका खुद पाकिस्तानी वैज्ञानिकों को ट्रेनिंग दे रहा था।
पोखरण-2 और कड़े प्रतिबंध
1998 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अमेरिकी सैटेलाइटों को चकमा देकर पोखरण में पांच सफल परमाणु परीक्षण किए। अमेरिका ने:
• भारत पर कड़े आर्थिक व तकनीकी प्रतिबंध लगाए।
• भारतीय वैज्ञानिक संस्थाओं को “एंटिटी लिस्ट” में डाला।
लेकिन पाकिस्तान के परमाणु परीक्षण पर इतनी सख्ती नहीं की गई, जिससे साफ था कि अमेरिका भारत को परमाणु शक्ति के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहता था।
कारगिल युद्ध में अमेरिकी बेरुखी
1999 में कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना को लेजर गाइडेड बम चाहिए थे। अमेरिका ने देने से इनकार कर दिया। उस समय इज़रायल ने मदद की। यह घटना भारत के लिए एक बड़ा सबक बनी। स्वदेशी हथियार विकास ही असली सुरक्षा है।
ट्रंप प्रशासन की नीतियां और नई चुनौतियां
डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में:
• भारत पर 25% टैरिफ लगाया गया।
• पाकिस्तान पर सिर्फ 19% टैरिफ।
• रूस से S-400 मिसाइल सिस्टम खरीदने पर प्रतिबंध की धमकी।
• पाकिस्तान में तेल खोजने की डील और कश्मीर पर मध्यस्थता की पेशकश।
भारत का सीक्रेट प्लान: हर चाल का जवाब
1. 1971 का परमाणु छाया योजना
सोवियत संघ के साथ गुप्त न्यूक्लियर शील्ड प्लान बनाया गया, जिससे अमेरिकी बेड़ा पीछे हट गया।
2. मिरर ब्लाइंड प्रोजेक्ट
पोखरण परीक्षण के दौरान DRDO ने ऐसा सिस्टम बनाया जिसने अमेरिकी सैटेलाइट की थर्मल इमेजिंग को बेअसर कर दिया।
3. सुदर्शन स्मार्ट बम
कारगिल के बाद भारत ने खुद का प्रिसिजन बम प्रोग्राम शुरू किया, ताकि किसी विदेशी मदद पर निर्भर न रहना पड़े।
4. टेक्नोलॉजी का हाइपर लोकलाइजेशन
विदेशी तकनीक को भारत में बनाकर भारतीयकरण करना शुरू किया गया, खासकर रूस के साथ मिलकर।
5. ब्लू रिवेंज डॉक्ट्रिन
अमेरिकी टैरिफ के असर को खत्म करने के लिए खाड़ी देशों, ब्राजील और दक्षिण-पूर्व एशिया में नए व्यापारिक रास्ते बनाए जा रहे हैं।
भारत की कूटनीतिक मास्टर स्ट्रोक
• ISRO, DRDO और BARC प्रतिबंधों के बावजूद सुपर कंप्यूटर और क्वांटम डिवाइस बना रहे हैं।
• भारत अब अमेरिकी तेल पर निर्भर नहीं, बल्कि अफ्रीका और एशिया में अपने तेल-गैस ब्लॉक खरीद रहा है।
• यहां तक कि चीन ने भी भारत की स्वतंत्र विदेश नीति की तारीफ की।
निष्कर्ष: नया भारत, नई रणनीति
अमेरिका की कोशिश हमेशा भारत को सीमित रखने की रही है। चाहे पाकिस्तान के जरिए, आर्थिक दबाव डालकर, या तकनीकी रोक लगाकर। लेकिन भारत ने हर बार इन चुनौतियों को अवसर में बदल दिया।
आज का भारत किसी भी महाशक्ति के दबाव में नहीं आता। यह वही भारत है जो अपनी ताकत, रणनीति और आत्मनिर्भरता से दुनिया में अपनी अलग पहचान बना रहा है।