
PM श्री नरेन्द्र मोदी, पाकिस्तान सेना प्रमुख असीम मुनीर और शेख हसीना का प्रतीकात्मक चित्र। PC: AI
भूमिका: लोकतंत्र का असली इम्तिहान
भारत के पड़ोसी देशों पाकिस्तान और बांग्लादेश की “लोकतंत्र” व्यवस्था अपने भीतर कई परतें समेटे हुए है। जब राष्ट्रवादी लेखक भारत की चुनाव प्रक्रिया पर सवाल खड़ा करते हैं, उनके तर्क हमें अपने आसपास चल रहे अनदेखे संघर्षों का एहसास कराते हैं।
अफवाहें, साजिशें, और मानवीय भावनाएँ इन सबका मिलाजुला असर हमारे देश की राजनीति और सामाजिक तानेबाने में स्पष्ट नज़र आता है।
दुनिया में लोकतंत्र सिर्फ़ चुनाव करवाने का नाम नहीं है। असली परीक्षा तब होती है जब सत्ता विरोध का सामना करती है। क्या वह हिंसा से दबाती है, या चालाकी से मात देती है?
आज पाकिस्तान और बांग्लादेश के हालात इस सवाल के आईने में खड़े हैं। वहीं भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार एक अलग ही रास्ता चुनती नज़र आती है। जहाँ टकराव से बचते हुए, विपक्ष को मात देना ही रणनीति है।
पाकिस्तान: लोकतंत्र का मुखौटा
पाकिस्तान की राजनीति की धारा बरसों से सेना के नियंत्रण में रही है। जो भी प्रधानमंत्री कुर्सी पर बैठता है, उसके सिर पर एक अदृश्य तलवार लटकती रहती है। पाकिस्तान में लोकतंत्र महज़ एक दिखावा है। वहाँ प्रधानमंत्री वही बनता है जिसे सेना की मंज़ूरी मिलती है। चुनाव आयोग, विपक्ष, जनता ये सब केवल नाटक के पात्र हैं।
जो भी प्रधानमंत्री अपनी सीमाओं से बाहर जाने की कोशिश करता है, या तो जेल में डाल दिया जाता है या देश छोड़ने पर मजबूर किया जाता है। सत्ता का असली रिमोट हमेशा सेना के पास होता है।
सेना के हस्तक्षेप के चलते एक सामान्य नागरिक का लोकतंत्र से भरोसा उठ गया है। यहां पर चुनाव प्रक्रिया, विपक्ष और जनाक्रोश सब केवल नाटक का हिस्सा लगते हैं।
बांग्लादेश: छात्र आंदोलन से सत्ता डगमगाना
जुलाई 2024 में बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में कोटा सुधार की माँग को लेकर छात्र आंदोलन शुरू हुआ। विपक्ष के उकसावे से यह हिंसक बन गया।
प्रधानमंत्री शेख हसीना ने पुलिस और अर्धसैनिक बलों को खुली छूट दी।
• रिपोर्ट के अनुसार, 150 से लेकर 1400 तक छात्रों की मौत हुई।
• 5 दिन का कर्फ्यू लगा रहा।
किसी भी देश में छात्र और किसान भावनात्मक प्रतीक होते हैं। जब इन्हें हिंसा से कुचला जाता है, तो भले उनकी मांगें गलत हों, लोग उनके समर्थन में खड़े हो जाते हैं और हिंसा फैल जाती है।
भारत में यह क्यों दोहराना चाहते हैं अराजक तत्व?
भारत में भी यही फॉर्मूला आज़माया जाता है—
• कृषि सुधार के खिलाफ फर्जी आढ़तियों का धरना
• आरक्षण के नाम पर आंदोलन
• रोहित वेमुला जैसे मामलों में उकसावे की राजनीति
मकसद साफ है, सरकार को उकसाना, ताकि पुलिस गोली चलाए, लोग मारे जाएं, और फिर उसी खून से राजनीति की फसल बोई जाए।
सरकारी हिंसा: देश तोड़ने वालों का हथियार
दुनिया के कई देशों में सरकारी हिंसा ने उल्टा असर डाला—
• केन्या में पुलिस कार्रवाई से 50+ छात्रों की मौत, राष्ट्रपति की स्थिति संकट में
• सीरिया, यमन, माली, म्यांमार जहाँ दमन के बाद देश गृहयुद्ध में फंसे
मुख्य बिंदु: हिंसा का अंत अराजक तत्व तय करते हैं, सरकार नहीं।
मोदी टीम की रणनीति
मोदी सरकार का पैटर्न अलग है:
• अनुच्छेद 370 हटाया गया, एक भी मौत नहीं हुई।
• किसान आंदोलन एक साल चला। कोई पुलिस गोलीबारी नहीं
• विपक्ष और अर्बन नक्सल तैयार बैठे थे कि खून बहे, पर सरकार ने उन्हें मौका नहीं दिया
ये रणनीति चुपचाप विपक्ष के हथियार कुंद कर देती है।
भारत : चुनाव आयोग की मजबूती, विपक्ष की चुनौती और जनता की भागीदारी
चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता और विपक्ष का महत्त्व
भारत की चुनाव प्रक्रिया संविधान और कानून से सशक्त है। चुनाव आयोग स्वतंत्र रूप से काम करता है और हर चुनाव की पवित्रता बनाये रखता है। यहाँ हर साल विधानसभा चुनाव होते हैं, देश के हर कोने में विरोध, हार-जीत, दल बदल – all contribute to vibrant democracy.
पिछले दो आम चुनावों में मोदी सरकार को 31% से लेकर 37% तक वोट मिले। हाल में एनडीए गठबंधन को 292 सीटें, भाजपा को 240 सीटें। विपक्ष भी मजबूत होकर 99 सीटें जीतता है, तो कभी क्षेत्रीय दल सत्ता में आते हैं। झारखंड, बंगाल, तमिलनाडु, पंजाब जैसे राज्यों में भाजपा की हार इस लोकतंत्र की असली शक्ति की ओर इशारा करती है।
विपक्ष कई बार चुनाव आयोग और मतदान प्रक्रिया पर सवाल उठाता है, लेकिन जनता का विश्वास, सामान्य नागरिक का वोट, हर बार लोकतंत्र को नया जीवन देता है।
मोदी सरकार की रणनीति : बुद्धिमत्ता, चतुराई और धैर्य
हिंसा-दमन से परहेज और शांति की नीति
370 हटाने से लेकर कृषि सुधारों तक, मोदी टीम ने अपने विरोधियों को हिंसा के जाल में नहीं फँसाया। जहाँ पाकिस्तान और बांग्लादेश में सरकारी दमन से मौतें होती हैं, वहीं भारत में विरोधी वर्गों को पुलिसिया कार्रवाई से बचाया गया।
विपक्ष चाहे वह चुनाव आयोग पर सवाल उठाए या राजनीतिक प्रदर्शनों का सहारा ले, मोदी सरकार एक बुद्धिमान, साहसी और चालाक नेतृत्व के रूप में सामने आई है।
कई राष्ट्रवादी ‘आत्ममुग्धता’ का आरोप लगाते हैं, मगर यह सतही सोच है। असली रणनीति जनता के विश्वास को कायम रखने और विरोधियों को लोकतांत्रिक ढंग से जवाब देने की रही है।
निष्कर्ष: लोकतंत्र का असली चेहरा – व्यक्ति, भावनाएँ और विश्वास
लोकतंत्र मशीन नहीं, भावना है। पाकिस्तान और बांग्लादेश की प्रक्रिया उस व्यवस्था की सीमाएँ दिखाती है, जहाँ सत्ता का असली खेल पर्दे के पीछे चलता है। भारत में चुनाव आयोग की मजबूती, विरोध के खुल्ले मंच, सामाजिक आंदोलनों की विविधता यही दर्शाते हैं कि लोकतंत्र जनता की शक्ति है, सिर्फ नाम मात्र का तंत्र नहीं।
मोदी सरकार की व्यवसायिक चतुराई और विपक्ष की सतर्कता, दोनों मिलकर देश को आगे बढ़ाते हैं। भारत का लोकतंत्र, दुनिया में लोकतांत्रिक मूल्यों की एक मिसाल है।
भारत में लोकतंत्र अभी भी जीवंत है, और इसकी रक्षा का सबसे बड़ा तरीका है, उकसावे में न आना।
मोदी टीम एक शतरंज के खिलाड़ी की तरह कदम उठा रही है। धीरे, समझदारी से, बिना हिंसा के विपक्ष को घेरते हुए।
यह राजनीति में वही “धैर्य और चालाकी” है, जो अंततः देश को स्थिर रखती है।
⸻
FAQ Section
Q1: पाकिस्तान में लोकतंत्र कमजोर क्यों है?
A1: पाकिस्तान में सेना का सर्वोच्च नियंत्रण और प्रधानमंत्री का नाममात्र का नेतृत्व मुख्य कारण हैं। वहाँ स्वतंत्रता और जनप्रतिनिधित्व खतरे में रहते हैं.
Q2: बांग्लादेश में जुलाई 2024 में छात्र प्रदर्शन क्यों हुए?
A2: सरकारी नौकरियों में आरक्षण कोटा के विरोध में छात्रों ने प्रदर्शन किया, जो विपक्ष के उकसावे से हिंसक हुआ और सरकार ने कठोर कार्रवाई की.
Q3: भारत में चुनाव आयोग की भूमिका क्या है?
A3: भारत का चुनाव आयोग स्वतंत्र और पारदर्शी चुनाव करवाने का जिम्मेदार होता है, जिससे लोकतंत्र की नींव मज़बूत बनी रहती है.
Q4: मोदी सरकार विरोधियों का कैसे सामना करती है?
A4: मोदी टीम स्पष्टीकरण, धैर्य और शांतिपूर्ण रणनीति अपनाती है, जिससे हिंसात्मक प्रदर्शन के बजाय लोकतांत्रिक संवाद को प्राथमिकता दी जाती है.
Q5: भारत में विपक्ष का क्या महत्व है?
A5: विपक्ष चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठाता है, पर जनता का विश्वास लोकतंत्र को जिंदा रखता है; क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दल लोकतंत्र को और मजबूत बनाते हैं