
भारत में सेमीकंडक्टर निर्माण की नई उम्मीद। तकनीक और राष्ट्रीय गौरव का संगम। PC: AI
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब लाल किले से “सेमीकंडक्टर” का ज़िक्र किया, तो यह सिर्फ़ एक तकनीकी मुद्दा नहीं था। यह भारत की बीती संभावनाओं और अधूरी कहानियों का दर्द भी था।
उन्होंने कहा कि भारत में सेमीकंडक्टर फैक्ट्री का विचार 50-60 साल पहले जन्मा था, लेकिन उसे “गर्भ में ही मार दिया गया”। यह बयान राजनीति में हलचल मचाने के लिए काफी था। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने तुरंत पलटवार करते हुए कहा कि मोहाली का सेमीकंडक्टर कॉम्प्लेक्स 1983 में ही शुरू हो चुका था।
दोनों के दावों में अपनी-अपनी सच्चाई थी। लेकिन असली सवाल है “भारत इस तकनीकी दौड़ में कैसे पिछड़ा और अब कैसे फिर से वापसी की तैयारी कर रहा है?”
भारत का पहला सुनहरा मौका और चूक
1960 का दशक: सिलिकॉन क्रांति का शुरुआती दौर
1960 के दशक में भारत का वैज्ञानिक क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा था। स्पेस और न्यूक्लियर रिसर्च पर खास ध्यान था। इसी समय, दुनिया में सेमीकंडक्टर क्रांति शुरू हो चुकी थी।
अमेरिका की Fairchild Semiconductor ने भारत में फैब लगाने का प्रस्ताव दिया, लेकिन नौकरशाही की धीमी चाल और राजनीतिक दूरदर्शिता की कमी के कारण यह प्रोजेक्ट मलेशिया चला गया।
शुरुआती प्रयास और ठहराव
BEL और शुरुआती सफलता
1962 के बाद भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) ने सिलिकॉन और जर्मेनियम ट्रांजिस्टर बनाने शुरू किए।
इनकी अंतरराष्ट्रीय मांग थी, लेकिन जल्द ही चीन, ताइवान और दक्षिण कोरिया से सस्ते और बेहतर इंटीग्रेटेड सर्किट आने लगे। BEL प्रतिस्पर्धा में टिक नहीं सका और फैब बंद करनी पड़ी।
मेटकेम सिलिकॉन लिमिटेड का सपना
1980 के दशक में प्रोफेसर ए.आर. वासुदेवन मूर्ति ने BEL के साथ मिलकर सोलर सेल और इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए पॉलिसिलिकॉन वेफर बनाने की शुरुआत की।
अगर यह प्रोजेक्ट सफल होता, तो भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स क्रांति जल्दी आ सकती थी।
लेकिन सरकारी समर्थन की कमी और सस्ती बिजली की अनुपलब्धता ने इस सपने को अधूरा छोड़ दिया।
SCL मोहाली और आग का रहस्य
1984 में चंडीगढ़ (मोहाली) में Semiconductor Complex Limited (SCL) ने चिप निर्माण शुरू किया।
तब SCL 5000 नैनोमीटर तकनीक पर काम कर रहा था, जबकि दुनिया इससे कहीं आगे बढ़ चुकी थी।
1989 में एक रहस्यमयी आग ने SCL के ब्लूप्रिंट और जरूरी उपकरण नष्ट कर दिए। इस आग की वजह आज तक स्पष्ट नहीं हो पाई। इसके बाद SCL कभी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नहीं उभर सका।
Intel की भारत यात्रा और नौकरशाही का जाल
1988 में Intel ने भारत में ऑपरेशन शुरू किया और बेंगलुरु को अपना बड़ा केंद्र बनाया।
2005 में Intel ने 1 बिलियन डॉलर निवेश कर सेमीकंडक्टर प्लांट लगाने का प्रस्ताव रखा, लेकिन कस्टम ड्यूटी, बंदरगाह पर उपकरण रोकना, और भ्रष्टाचार ने प्रोजेक्ट को मार दिया।
आख़िरकार Intel ने भारत छोड़ दिया।
2004-2014 – खोया हुआ दशक
इन दस सालों में भारत में सेमीकंडक्टर निर्माण के लिए कोई ठोस सरकारी नीति नहीं बनी।
जब दुनिया 3 नैनोमीटर तकनीक की ओर बढ़ रही थी, तब भारत अभी भी शुरुआती स्तर की चिप तकनीक में फंसा हुआ था।
अब क्यों उम्मीद है वापसी की?
नई सरकारी नीतियाँ और निवेश
अब भारत 28-90 नैनोमीटर तकनीक की चिप बनाने की तैयारी कर रहा है।
सरकार PLI स्कीम, टैक्स इंसेंटिव और विदेशी कंपनियों के साथ साझेदारी के जरिए इस दौड़ में वापसी करना चाहती है।
वैश्विक स्थिति का फायदा
अमेरिका-चीन तनाव और सप्लाई चेन संकट ने भारत को एक वैकल्पिक निर्माण केंद्र बनने का मौका दिया है।
TSMC, Micron, और अन्य बड़ी कंपनियां भारत में निवेश की संभावना तलाश रही हैं।
निष्कर्ष: अधूरा सपना, नया संकल्प
भारत के पास सेमीकंडक्टर निर्माण का मौका दशकों पहले था, लेकिन नौकरशाही, नीतिगत देरी और भ्रष्टाचार ने इसे खो दिया।
आज वैश्विक हालात और नई नीतियाँ भारत को दूसरा मौका दे रही हैं। अगर इस बार सही फैसले और तेज़ अमल हुआ, तो भारत न सिर्फ़ दौड़ में लौट सकता है बल्कि तकनीकी नेतृत्व भी हासिल कर सकता है।
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प्रश्न: भारत सेमीकंडक्टर निर्माण में क्यों पिछड़ा?
उत्तर: भारत नौकरशाही की देरी, सरकारी समर्थन की कमी, सस्ती बिजली के अभाव, और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के कारण सेमीकंडक्टर निर्माण में पिछड़ गया। 1960-2000 के बीच कई प्रोजेक्ट अधूरे रह गए, जैसे BEL का ट्रांजिस्टर उत्पादन, मेटकेम सिलिकॉन, और Intel का प्लांट प्रस्ताव।
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FAQ सेक्शन
Q1: भारत का पहला सेमीकंडक्टर प्लांट कब शुरू हुआ?
A1: 1984 में मोहाली के SCL ने सेमीकंडक्टर निर्माण शुरू किया।
Q2: Intel ने भारत में प्लांट क्यों नहीं लगाया?
A2: कस्टम ड्यूटी, उपकरणों की बंदरगाह पर रोक, और सरकारी देरी के कारण Intel ने प्रोजेक्ट बंद कर दिया।
Q3: क्या भारत अब सेमीकंडक्टर निर्माण में वापसी कर सकता है?
A3: हाँ, नई सरकारी नीतियाँ, वैश्विक सप्लाई चेन संकट और विदेशी निवेश से भारत के पास मजबूत अवसर हैं।