
क्या आपको मैगी विवाद याद है? वो वक्त, जब हर न्यूज़ चैनल पर सिर्फ यही तैर रहा था कि मैगी में खतरनाक मात्रा में सीसा (Lead) पाया गया है! लोगों ने घरों से मैगी फेंक दी, दुकानों पर बेचने पर रोक लग गई, और फिर कुछ समय बाद… सबकुछ सामान्य हो गया।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि सिर्फ मैगी नहीं, बल्कि हमारे रोज़मर्रा के जीवन में ऐसे ज़हरीले तत्व कितने गहराई से घुसे हुए हैं?
आइए जानते हैं कि RoHS/ELV जैसे अंतरराष्ट्रीय मानक क्या हैं, और ये हमारे और हमारे बच्चों की जान कैसे बचा सकते हैं।
RoHS/ELV क्या हैं?
RoHS (Restriction of Hazardous Substances) और ELV (End of Life Vehicles) जैसे नियम, इलेक्ट्रॉनिक और ऑटोमोबाइल उद्योग में उपयोग होने वाले कुछ खास ज़हरीले रसायनों पर रोक लगाने के लिए बनाए गए हैं।
प्रतिबंधित खतरनाक तत्वों में शामिल हैं:
• सीसा (Lead)
• पारा (Mercury)
• कैडमियम (Cadmium)
• हेक्सावेलेंट क्रोमियम (Hexavalent Chromium)
• कुछ फ्लेम रिटार्डेंट प्लास्टिक (PBB, PBDE)
ये नियम आज के यूरोप, अमेरिका, जापान जैसे विकसित देशों में दशकों से लागू हैं और अब भारत भी इन्हें धीरे–धीरे लागू कर रहा है।
कहां–कहां मिलते हैं ये ज़हर?
सोचिए, हमारे आस–पास मौजूद रोजमर्रा की चीजों में ये ज़हर छिपा बैठा है:
• सस्ते मोबाइल कवर, चमकीले खिलौने
• बच्चों के चाइनीज खिलौने
• सस्ती इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस – चार्जर, हेडफोन, पावर बैंक
• रंगीन टिफिन बॉक्स, पानी की बोतलें
• गाड़ी की सीट, स्टेयरिंग, प्लास्टिक पार्ट्स
इन वस्तुओं को हम दिनभर छूते हैं, बच्चे चूसते हैं, और यही ज़हर हमारी त्वचा, साँसों या भोजन के जरिए शरीर में प्रवेश कर जाता है।
शरीर में जमा होकर क्या करते हैं ये टॉक्सिक तत्व?
• शरीर में ये तत्व जमा होते जाते हैं — इन्हें बाहर निकालने का कोई प्राकृतिक तरीका नहीं होता!
• धीरे–धीरे ये उत्पन्न करते हैं:
• कैंसर
• किडनी फेलियर
• नर्व सिस्टम डिसऑर्डर
• हार्मोनल असंतुलन
• बांझपन (Infertility)
• और अंततः — अचानक मौत
“वो एकदम ठीक था… अचानक कैसे मर गया?” — क्या वाकई?
जब कोई बिना किसी बीमारी के, अचानक दम तोड़ देता है, तब हम कहते हैं — “कुछ नहीं था, एकदम ठीक था!”
पर क्या हम कभी सोचते हैं कि उस शरीर में पिछले सालों से सीसा, पारा या प्लास्टिक का ज़हर जमा हो रहा था?
सरकारें क्या कर रही हैं और हम क्या कर रहे हैं?
सरकार जब कहती है कि:
• 15 साल पुरानी गाड़ी बंद होनी चाहिए,
• सस्ते प्लास्टिक पर रोक होनी चाहिए,
• ई–वेस्ट रीसायकल करना ज़रूरी है,
तो उसका मकसद सिर्फ पर्यावरण नहीं, हमारे जीवन की रक्षा करना होता है।
सवाल यह है — क्या हम वाकई समझते हैं?
हम खुद बच्चों को ठेले से मोमो, बर्गर, ज़हरीले खिलौने दिलाते हैं, फिर बच्चे की अचानक मौत के लिए सरकार को कोसते हैं।
हम 100 रुपए का कवर खरीदकर खुश होते हैं, लेकिन उसमें जो प्लास्टिक है, वह शरीर में जाकर कितने टॉक्सिन बढ़ा रहा है — यह कभी सोचते ही नहीं।
समाधान क्या है?
अपने जीवन में छोटे लेकिन ठोस बदलाव लाएं:
• RoHS-compliant उत्पाद खरीदें (जैसे मोबाइल, चार्जर, खिलौने)
• बच्चों को सस्ते रंगीन खिलौनों से दूर रखें
• प्लास्टिक कम करें, स्टील/कांच के बर्तन अपनाएं
• अपने इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट को ठीक से डिस्पोज करें
• सरकार के नियमों को समझें और मानें — विरोध सिर्फ विरोध के लिए ना करें
अब भी वक्त है — संभलिए
हम विज्ञान में गहराई से ज्ञान लेना चाहते हैं, लेकिन जीवन में सरल विज्ञान को अपनाने से कतराते हैं।
जिस समाज में भगवान कृष्ण को भी लोग नहीं समझ पाए, वहां आज हर कोई खुद को सबसे बड़ा ज्ञानी मानता है।
पर अब वक्त आ गया है कि हम कोसने की आदत से बाहर आएं, और अपनी सोच और जीवनशैली में बदलाव लाएं।
यदि हम सच में अपने परिवार, बच्चों, समाज से प्रेम करते हैं, तो हमें खुद से यह सवाल पूछना होगा:
“क्या हम अपने बच्चों को एक सुरक्षित और ज़हरीले तत्वों से मुक्त जीवन देना चाहते हैं या सिर्फ सरकार को कोसते रहना?”
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