
कर्नल नरेंद्र “बुल” कुमार – सियाचिन ग्लेशियर के पिता, भारत के अनकहे हीरो।
भूमिका: एक भूला हुआ हीरो
वर्ष 1950… आज़ादी को अभी कुछ ही साल हुए थे। देहरादून के इंडियन मिलिट्री अकादमी के ज्वाइंट सर्विसेज़ विंग में एक सत्रह वर्षीय कैडेट बॉक्सिंग रिंग में अपने सीनियर से भिड़ रहा था। सामने था भविष्य का सेनाध्यक्ष जनरल एस.एफ. रॉड्रिग्स, और दूसरी ओर एक नन्हा-सा जूनियर नरेन्द्र कुमार शर्मा। वह पिटा, मगर पीछे नहीं हटा। उस दिन उसे एक नाम मिला “बुल”।
यही बुल आगे चलकर वो शख़्स बना जिसे दुनिया “Father of Siachen Glacier” कहती है।
बुल की जड़ें: रावलपिंडी से कुमायूँ रेजीमेंट तक
पाकिस्तान के रावलपिंडी में जन्मे नरेंद्र कुमार विभाजन के दौरान अपने परिवार के साथ भारत आ गए। सेना में भर्ती होने के बाद उनकी नियति ने उन्हें सबसे कठिन और चुनौतीपूर्ण क्षेत्र की ओर धकेला… हिमालय के बर्फीले ग्लेशियर।
उनका जुनून पर्वतारोहण था। उन्होंने कई चोटियों को फतह किया, मगर सियाचिन ने उन्हें अमर बना दिया।
सियाचिन का रहस्य और बुल की भूमिका
क्यों है सियाचिन इतना महत्वपूर्ण?
सियाचिन ग्लेशियर सिर्फ़ बर्फ़ का रेगिस्तान नहीं, बल्कि भारत और पाकिस्तान के बीच रणनीतिक मोर्चा है। यह इलाका एशिया की “वॉटर टॉवर” कहलाने वाली नदियों का उद्गम स्थल है। जो इसे नियंत्रित करता है, वही पूरे क्षेत्र की सुरक्षा पर हावी रहता है।
बुल का योगदान: भारत का मास्टर ऑफ ग्लेशियर
कर्नल नरेंद्र “बुल” कुमार ने अपने अभियानों से:
• दुर्गम रास्तों का नक्शा बनाया
• पाकिस्तानी दखल और विदेशी पर्वतारोहियों की गतिविधियों का खुलासा किया
• सैनिकों के लिए रूट्स और रणनीति तय की
उनके सर्वेक्षण और नक्शे ही वह आधार बने जिनके दम पर 1984 में ऑपरेशन मेघदूत चलाया गया। इसी ऑपरेशन से भारत ने सियाचिन पर स्थायी नियंत्रण पाया।
साहस की कीमत: शरीर का बलिदान
नरेन्द्र “बुल” कुमार का शरीर खुद एक रणभूमि बन गया।
• लगातार ग्लेशियर अभियानों से उनकी उंगलियां बर्फ में गलकर झड़ गईं।
• वे अपंग हुए, मगर मिशन कभी नहीं रोके।
• हर अभियान के साथ उनका नाम और भी दृढ़ होता गया… सियाचिन का बुल।
क्यों कहलाए “Father of Siachen Glacier”?
क्योंकि अगर बुल न होते तो:
• भारत सियाचिन के नक्शों से अनजान रहता
• पाकिस्तान आसानी से उस ग्लेशियर पर कब्ज़ा कर लेता
• भारतीय सेना के पास रणनीतिक जानकारी न होती
असल मायनों में, बुल ने अपनी जान, अंग और जीवन दांव पर लगाकर भारत को सियाचिन दिलाया।
वीरगति और गुमनामी
31 दिसंबर 2020 कर्नल नरेंद्र “बुल” कुमार अपनी अंतिम लड़ाई हारकर चले गए। दुखद यह कि देश का एक सच्चा हीरो गुमनामी में विदा हो गया।
निष्कर्ष: बुल को नमन
आज अगर भारत सियाचिन पर खड़ा है तो वह सिर्फ सैनिकों के शौर्य से नहीं, बल्कि कर्नल नरेंद्र “बुल” कुमार के त्याग, साहस और अदम्य संकल्प की वजह से है।
वे केवल एक सैनिक नहीं, बल्कि भारत के हिमालयी प्रहरी थे।
सच यही है की वे बुल थे, हैं और रहेंगे… सियाचिन के पिता।
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प्रश्न: कर्नल नरेंद्र “बुल” कुमार कौन थे?
उत्तर: कर्नल नरेंद्र “बुल” कुमार भारतीय सेना के महान पर्वतारोही और रणनीतिकार थे, जिन्होंने सियाचिन ग्लेशियर की खोज, नक्शा और अभियानों के जरिए भारत को वहाँ स्थायी नियंत्रण दिलाया। उन्हें “Father of Siachen Glacier” कहा जाता है।
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FAQs (People Also Ask)
Q1: कर्नल नरेंद्र “बुल” कुमार को “बुल” क्यों कहा गया?
A1: इंडियन मिलिट्री अकादमी में एक बॉक्सिंग मैच में उनकी जुझारूपन और जिद को देखकर उन्हें “बुल” यानी बैल नाम मिला।
Q2: सियाचिन ग्लेशियर भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
A2: यह एशिया की कई नदियों का स्रोत है और भारत-पाकिस्तान के बीच रणनीतिक सैन्य नियंत्रण का सबसे अहम मोर्चा है।
Q3: ऑपरेशन मेघदूत में उनकी क्या भूमिका रही?
A3: उनके नक्शों और सूचनाओं के आधार पर ही 1984 में ऑपरेशन मेघदूत चलाया गया, जिससे भारत ने सियाचिन पर स्थायी नियंत्रण पाया।
Q4: कर्नल बुल कुमार की मृत्यु कब हुई?
A4: उनका निधन 31 दिसंबर 2020 को हुआ।