
गहराई: 1981, पद्मिनी कोल्हापुरे और अमरीश पुरी
एक फ़िल्म जिसे बनाने से तांत्रिकों ने मना किया… फिर जो हुआ, वो रूह कंपा देने वाला था
कल्पना कीजिए, आप एक ऐसी कहानी पर फ़िल्म बनाना चाहते हैं जो काले जादू, रहस्यमय शक्तियों और अंधविश्वास की दुनिया में उतरती है। और तभी, एक दिन कुछ तांत्रिक आपके सामने आकर कहते हैं “अगर ये फ़िल्म बनाई, तो तुम्हारी ज़िंदगी तबाह हो जाएगी।” आप क्या करेंगे?
1981 में एक ऐसी ही कहानी सामने आई फ़िल्म गहराई की। इसे बनाने वाले डायरेक्टर दंपत्ति अरुणा राजे और विकास देसाई थे। लेकिन ये सिर्फ एक हॉरर थ्रिलर नहीं थी… ये एक सच्ची डरावनी दास्तान थी, पर्दे के पीछे की भी और ज़िंदगी में घटी त्रासदियों की भी।
जब तांत्रिकों ने दी चेतावनी — “मत बनाओ ये फ़िल्म!”
नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इस फ़िल्म को बनाने से पहले कुछ तांत्रिकों ने अरुणा-विकास को साफ़ चेतावनी दी थी की “काला जादू मत करना, और इस विषय से दूर रहो। नहीं तो बुरा समय शुरू हो जाएगा।”
इस चेतावनी को अनदेखा कर अरुणा राजे ने रिसर्च शुरू कर दी। वो खुद तांत्रिकों से मिलीं, उनके अनुभव सुने, और फ़िल्म की कहानी को काले जादू की जड़ तक ले गईं। मगर क्या इसकी क़ीमत उन्होंने अपनी ज़िंदगी से चुकाई?
फ़िल्म की प्रेरणा — बचपन के डर, नींबू-कुमकुम और रहस्य
अरुणा राजे का बचपन बैंगलोर में बीता। उनके पिता स्वतंत्रता सेनानी थे जो बाद में राजनेता बन गए। और तभी, उनके घर के बगीचे में हल्दी और कुमकुम लगे नींबू और अजीब-अजीब चीज़ें मिलने लगीं।
ये घटनाएं उनके दिल में घर कर गईं। वो कहती हैं की “कई राजनेता काला जादू करवाते थे। हमें इसका सीधा अनुभव हुआ।” यही वो बीज था जिससे गहराई की कहानी उपजी।
जब रिसर्च बन गया डरावना अनुभव
इस फ़िल्म की स्क्रिप्ट के लिए तीन लोगों की टीम बनाई गई। अरुणा राजे, उनके पति विकास देसाई और प्रसिद्ध नाटककार विजय तेंडुलकर।
रिसर्च के दौरान अरुणा को ऐसे किस्से मिले जो किसी हॉरर स्क्रिप्ट से कम नहीं थे। एक मामला ऐसा था जहां एक ईसाई व्यक्ति पर एक मुस्लिम लड़की का भूत सवार था, जो शायरी करता था, उर्दू बोलता था और बेहद डरा देने वाला था।
फ़िल्म गहराई — पर्दे पर उतरी काले जादू की दुनिया
गहराई 13 फरवरी 1981 को रिलीज़ हुई। संयोग देखिए उसी दिन मनोज कुमार की क्रांति भी सिनेमाघरों में आई।
मुख्य कलाकार:
• पद्मिनी कोल्हापुरे (मुख्य भूमिका)
• डॉ. श्रीराम लागू
• अनंत नाग
• रीता भादुड़ी
• अमरीश पुरी (कैमियो रोल)
फ़िल्म का इकलौता गीत “रिश्ते बस रिश्ते होते हैं” था, जिसे लिखा था गुलज़ार ने और गाया किशोर कुमार ने।
फ़िल्म के बाद घटीं डरावनी सच्ची घटनाएं
फ़िल्म के बनने के कुछ ही सालों बाद अरुणा राजे की ज़िंदगी में जो तूफ़ान आया, वो हैरान कर देने वाला था:
• पति विकास देसाई से तलाक़ हो गया।
• 9 साल की बेटी की कैंसर से मौत हो गई।
अरुणा खुद कहती हैं — “फ़िल्म के बाद मेरी ज़िंदगी में सिर्फ दुःख ही दुःख आया।”
इतना ही नहीं, कई दर्शकों ने भी शिकायत की कि फ़िल्म देखने के बाद उनके जीवन में अजीब और डरावनी घटनाएं होने लगीं। किसी का खाना सड़ गया, कोई बीमार हो गया, और कई ने तांत्रिकों के नंबर मांगे।
सवाल अब भी बाकी है — क्या वाकई ऐसा कुछ हुआ था ?
क्या गहराई के पीछे सच में कोई अलौकिक ताक़त थी? या फिर ये सिर्फ एक मनोवैज्ञानिक भ्रम?
कई लोग इसे महज संयोग मानते हैं, तो कई इसे काले जादू की शक्ति का परिणाम। लेकिन इतना तो तय है कि गहराई सिर्फ एक फ़िल्म नहीं थी, ये एक साहसिक चुनौती थी… अंधविश्वास, भय और त्रासदी से लड़ने की।
निष्कर्ष — कला और अंधविश्वास की वो “गहराई”
गहराई एक ऐसी फ़िल्म थी जिसे चेतावनी के बावजूद बनाया गया, और जिसकी क़ीमत शायद बहुत भारी पड़ी। लेकिन इसने एक बात तो साबित कर दी की कला जब डर से टकराती है, तब इतिहास बनता है।
इस फ़िल्म ने न केवल दर्शकों को डराया, बल्कि यह सवाल भी खड़ा कर दिया कि “क्या कुछ कहानियाँ सच में शापित होती हैं?”