
ग्लूमी संडे के रचयिता रेजसो सेरेस और ग्लूमी संडे गाना
ग्लूमी संडे: वो गाना जिसने दुनिया को मौत की धुन पर नचाया
कुछ गीत दिल को छू जाते हैं, कुछ गीत यादों में बस जाते हैं, लेकिन एक गीत ऐसा भी था जो ज़िंदगियाँ छीन लेता था। साल 1933 में लिखा गया “ग्लूमी संडे” सिर्फ़ एक गाना नहीं, बल्कि एक रहस्यमयी श्राप बन गया। इतना गहरा, इतना दर्दनाक कि सौ से अधिक लोगों ने इसे सुनने के बाद अपनी जान दे दी।
ग्लूमी संडे की डरावनी शुरुआत
रेजसो सेरेस हंगरी का एक प्रतिभाशाली पियानिस्ट, जिसकी ज़िंदगी उस मोड़ पर पहुँच गई थी
जहाँ मोहब्बत ने धोखा दिया और दिल में सिर्फ़ अंधेरा भर गया। अपनी बेवफ़ा प्रेमिका के ठुकराने के बाद, उसने दर्द को सुरों में पिरोकर “ग्लूमी संडे” लिखा।
पहले यह गाना हंगेरियन भाषा में था, बाद में अंग्रेज़ी में भी आया और आज यह 28 भाषाओं में रिकॉर्ड किया जा चुका है।
क्यों बना ये गाना ‘सुसाइड सॉन्ग’
शुरुआती डर और इनकार
जब “ग्लूमी संडे” तैयार हुआ, तब कई गायकों ने इसे रिकॉर्ड करने से मना कर दिया।
कारण? इसके बोल इतने गहरे और दुखभरे थे कि उन्हें लगता था की यह श्रोताओं पर खतरनाक असर डालेगा।
मौत की पहली लहर
आख़िरकार 1935 में यह गाना रिलीज़ हुआ और जैसे कोई अदृश्य आग फैल गई हो,
लोग इसे सुनने के बाद बेहद उदास होकर जान देने लगे।
पहला आधिकारिक आंकड़ा था… 17 आत्महत्याएँ।
मरने वालों की लाश के पास यही गाना बजता हुआ मिलता था।
100 से अधिक मौतें और सरकारी बैन
जैसे-जैसे समय बीता, मौतों का आंकड़ा बढ़ता गया।
जल्द ही 100 से अधिक लोग इस गाने को सुनकर अपनी ज़िंदगी ख़त्म कर चुके थे।
हंगरी की सरकार ने 1941 में इस गाने को बैन कर दिया। यह प्रतिबंध साल 2003 में हटा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
प्रेम, विश्वासघात और मौत का चक्र
विडंबना यह कि रेजसो सेरेस की वही बेवफ़ा प्रेमिका,
जिसके लिए उसने यह गाना लिखा था, उसने भी इसे सुनकर आत्महत्या कर ली। कुछ साल बाद खुद सेरेस ने भी मौत को गले लगा लिया। पहले उसने एक इमारत से छलांग लगाई, पर बच गया।
अस्पताल में भर्ती होने के बाद, उसने एक तार से फांसी लगाकर अपनी जान ले ली।
गाने के बोल और उसका असर
“ग्लूमी संडे” के बोल इस तरह मौत को सुकून और जीवन को दर्द के रूप में पेश करते थे,
कि सुनने वाला डूबता चला जाता।
कई मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि यह गाना
उस समय के वैश्विक माहौल… महामंदी, युद्ध और निराशा के साथ मिलकर लोगों के मन पर गहरा असर डालता था।
ग्लूमी संडे की विरासत
1999 में “ग्लूमी संडे” नाम से एक फिल्म भी बनी,
जो हंगरी और जर्मनी में रिलीज़ हुई।
आज भी यह गाना यूट्यूब और अन्य प्लेटफ़ॉर्म्स पर उपलब्ध है, लेकिन इसके साथ जुड़ी काली कहानियाँ इसे सिर्फ़ एक गीत नहीं, बल्कि एक दंतकथा बना चुकी हैं।
संगीत का अंधेरा चेहरा
हम अक्सर संगीत को सुकून, प्रेरणा और खुशी से जोड़ते हैं, लेकिन “ग्लूमी संडे” बताता है कि कला का असर कितना गहरा हो सकता है। इतना गहरा कि वह जीवन देने के बजाय, उसे छीन भी सकता है।
यह गाना आज भी एक चेतावनी है:
कभी-कभी सुर सिर्फ़ दिल को नहीं, आत्मा को भी निगल सकते हैं।