
सिनेमा की दुनिया में कुछ चेहरे ऐसे होते हैं जो सिर्फ पर्दे पर नहीं, बल्कि दिलों में बसते हैं। उनकी एक झलक से ही कहानी में जान आ जाती है, संवाद बोले बिना भी वो बहुत कुछ कह जाते हैं। तेलुगू सिनेमा के ऐसे ही अनमोल रत्न थे कोटा श्रीनिवास राव। आज, जब साउथ सिनेमा से ये दुखद खबर आई कि ये दिग्गज अभिनेता अब हमारे बीच नहीं रहे, तो न सिर्फ तेलुगू फिल्म इंडस्ट्री, बल्कि पूरे भारतीय फिल्म जगत में शोक की लहर दौड़ गई। आइए, उनके जीवन के उन पहलुओं को जानें जो उन्हें सिर्फ एक अभिनेता नहीं, बल्कि एक युग बनाते हैं।
83 की उम्र में थमा अभिनय का सफर
13 जुलाई 2025 की सुबह, हैदराबाद के जुबली हिल्स में कोटा श्रीनिवास राव ने अंतिम सांस ली। दो दिन पहले ही उन्होंने अपना 83वां जन्मदिन मनाया था। लंबे समय से उम्र संबंधी बीमारियों से जूझ रहे इस कलाकार ने अपने घर में ही दुनिया को अलविदा कह दिया। लेकिन उनके जीवन की कहानी, उनकी कला, और उनका संघर्ष हमेशा जिंदा रहेगा।
एक ऐसा अभिनेता, जिसने सीमाओं को तोड़ दिया
कोटा श्रीनिवास राव का जन्म 1942 में हुआ था और उन्होंने 1978 में अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की। उनकी खासियत ये थी कि उन्होंने सिर्फ एक भाषा या एक फिल्म इंडस्ट्री तक खुद को सीमित नहीं रखा। तेलुगू, तमिल, कन्नड़, मलयालम, दक्कनी और हिंदी — हर भाषा में उन्होंने अभिनय के ऐसे उदाहरण पेश किए, जो यादगार बन गए।
हिंदी सिनेमा में भी छोड़ी अमिट छाप
1987 में हिंदी फिल्म प्रतिघात से उन्होंने बॉलीवुड में कदम रखा। इसके बाद सरकार, डार्लिंग, दरवाज़ा बंद रखो, लक, किरकिट और रक्त चरित्र जैसी फिल्मों में अपने दमदार किरदारों से दर्शकों का दिल जीता।
उनकी अंतिम हिंदी फिल्म थी 2016 में आई बाग़ी, जिसमें उन्होंने टाइगर श्रॉफ के साथ अभिनय किया।
वो हादसा जिसने एक पिता को तोड़ दिया
कोटा श्रीनिवास राव की ज़िंदगी में एक ऐसा अध्याय भी आया जिसने उनके जीवन को गहरे ज़ख्म दिए। साल 2010 में उनके इकलौते बेटे कोटा वेंकट अंजनेय की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई। वेंकट भी अभिनेता थे, और सिद्धम तथा गायम 2 जैसी फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया था। गायम 2 में तो उन्होंने अपने पिता के साथ स्क्रीन साझा की थी। बेटे की असमय मृत्यु ने कोटा श्रीनिवास राव के जीवन में एक शून्य भर दिया, जिसे शायद ही कभी भरा जा सका।
राजनीति में भी रखा कदम
अभिनय ही नहीं, कोटा श्रीनिवास राव ने राजनीति में भी अपनी अलग पहचान बनाई। साल 1999 में उन्होंने भाजपा के टिकट पर विजयवाड़ा पूर्व विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। हालांकि इसके बाद उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली और फिर कभी चुनाव नहीं लड़ा।
पद्मश्री से सम्मानित एक सच्चे कलाकार
उनकी कला को भारत सरकार ने भी सराहा। 2015 में कोटा श्रीनिवास राव को पद्मश्री से नवाजा गया। सिर्फ अभिनय ही नहीं, उन्होंने कुछ फिल्मों में गायन और डबिंग भी की थी। एक बहुमुखी प्रतिभा, एक परिपक्व कलाकार और एक संवेदनशील इंसान — यही थी कोटा श्रीनिवास राव की असली पहचान।
कोटा श्रीनिवास राव के अभिनय की खासियत
• उनके किरदारों में ग्रे शेड्स भी होते थे, लेकिन दर्शक उनसे नफरत नहीं कर पाते थे।
• वो अपने डायलॉग डिलीवरी और बॉडी लैंग्वेज से किरदारों को जीवंत कर देते थे।
• चाहे कोई मंत्री हो, माफिया हो, पिता हो या साधारण आदमी। हर रोल को उन्होंने पूरी ईमानदारी से निभाया।
अब जब वो नहीं रहे, तब उनकी कमी और ज़्यादा खलेगी
कोटा श्रीनिवास राव अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके किरदार, उनकी आवाज़ और उनकी आंखों की चमक हमेशा हमारे दिलों में ज़िंदा रहेगी। साउथ सिनेमा ने एक स्तंभ खो दिया है, लेकिन भारतीय सिनेमा को उन्होंने जो अमूल्य विरासत दी है, वह अनंतकाल तक अमर रहेगी।
आज जब हम कोटा श्रीनिवास राव को अंतिम विदाई दे रहे हैं, तो यह सिर्फ एक अभिनेता को विदाई नहीं, बल्कि एक युग को श्रद्धांजलि है।
उनकी आत्मा को शांति मिले। और उनका कला-सम्मान सदा जीवित रहे।