
“नीरजा भनोट की असाधारण बहादुरी की सच्ची कहानी। जानिए कैसे एक 21 वर्षीय एयर होस्टेस ने आतंकियों का सामना कर 360 यात्रियों की जान बचाई और बनी सबसे कम उम्र की अशोक चक्र विजेता।”
जब एक साधारण लड़की असाधारण बन जाती है
21 साल की उम्र… वह उम्र जब अधिकतर लड़कियाँ अपने करियर और सपनों की शुरुआत करती हैं। पर एक लड़की — नीरजा भनोट — इस उम्र में वो कर गई जो इतिहास में अमर हो गया।
5 सितम्बर 1986 को, PAN AM फ्लाइट 73 में आतंकियों से लोहा लेते हुए नीरजा ने अपनी जान गंवाई, लेकिन 360 यात्रियों की जान बचा ली। यही कहानी है भारत की सबसे कम उम्र की अशोक चक्र विजेता की — लाडो नीरजा भनोट।
नीरजा भनोट का प्रारंभिक जीवन
जन्म: 7 सितम्बर 1963, चंडीगढ़
पिता: हरीश भनोट (वरिष्ठ पत्रकार)
शिक्षा: बॉम्बे यूनिवर्सिटी से स्नातक
वैवाहिक जीवन: मात्र दो महीनों में समाप्त — दहेज उत्पीड़न और मानसिक यातना के कारण
अपने वैवाहिक जीवन की विफलता से बाहर निकलकर नीरजा ने खुद को नई राह पर मोड़ा और PAN AM में एयरहोस्टेस बनीं। यह वह निर्णय था जिसने उन्हें न केवल उड़ान दी, बल्कि अमरता भी दी।
PAN AM फ्लाइट 73 और हाईजैक की भयानक घटना
घटना के मुख्य बिंदु:
दिनांक: 5 सितम्बर 1986
स्थान: करांची,
पाकिस्तान उड़ान: PAN AM फ्लाइट 73 (मुंबई से अमेरिका)
यात्री: 361
क्रू मेंबर: 19
हमलावर: 5 हथियारबंद आतंकी
उद्देश्य: प्लेन को इज़राइल ले जाकर बिल्डिंग से टकराना (सुसाइड मिशन)
नीरजा की वीरता की झलकियाँ
1. साहसी निर्णय की शुरुआत
नीरजा ने आतंकियों को देखते ही कॉकपिट को हाईजैक की जानकारी दी, जिससे पायलट, को-पायलट और फ्लाइट इंजीनियर विमान से कूदकर जान बचा सके। यह निर्णय आतंकियों की पहली योजना विफल कर गया।
(पायलट्स का भाग जाना उनकी ट्रेनिंग का ही एक हिस्सा होता है जिससे प्लेन के हाईजैक होने पर आतंकी विमान को जबदस्ती कहीं और न ले जा सकें।)
2. पासपोर्ट छुपाने का जोखिम
जब आतंकियों ने अमेरिकी नागरिकों की पहचान के लिए पासपोर्ट एकत्र करने का आदेश दिया, तो नीरजा ने बड़ी समझदारी और हिम्मत के साथ कई पासपोर्ट छिपा दिए। इसने कई निर्दोष जिंदगियाँ बचा दीं।
3. अंतिम क्षणों में बच्चों की ढाल बनी
17 घंटे के तनावपूर्ण हाईजैक के बाद जब आतंकियों ने फायरिंग शुरू की, नीरजा ने इमरजेंसी स्लाइड खोल यात्रियों को बाहर भागने का रास्ता दिखाया। खुद सबसे पहले निकल सकती थीं, लेकिन तीन बच्चों को बचाने के लिए वह वहीं रुकीं और गोलियाँ खाकर शहीद हो गईं।
🏅 सम्मान और पुरस्कार
- अशोक चक्र (मरणोपरांत) — भारत — वीरता का सर्वोच्च शांति-कालीन सैन्य सम्मान
- तमगा-ए-इंसानियत — पाकिस्तान — इंसानियत के लिए असाधारण योगदान
- Justice for Victims of Crime Award — अमेरिका — अपराध पीड़ितों की रक्षा में साहसिक भूमिका
एक माँ की सच्ची बात
जब सोनम कपूर फिल्म नीरजा में उनका किरदार निभाने नीरजा की माँ से मिलने गईं, तो उन्होंने भावुक होते हुए कहा:
“तुम मेरी बेटी का रोल निभा रही हो, लेकिन मेरी नीरजा तुमसे ज्यादा खूबसूरत थी।”
यह सिर्फ सौंदर्य की बात नहीं थी — यह उस आंतरिक खूबसूरती की बात थी जो एक मां को अपनी बेटी में दिखती है — एक बेटी जिसने मरकर भी सैकड़ों जिंदगियाँ बचा लीं।
नीरजा भनोट की विरासत: एक आदर्श
जिस 7 वर्षीय बच्चे को नीरजा ने अपनी जान देकर बचाया था, वह आज एक एयरलाइन का कैप्टन है। नीरजा की प्रेरणा आज भी भारतीय युवाओं के लिए एक मिशाल है — संघर्ष, साहस और मानवता की।
निष्कर्ष: हर युग को चाहिए एक ‘नीरजा’
नीरजा भनोट की कहानी हमें यह सिखाती है कि साहस का चेहरा कोई सैनिक ही नहीं होता। कभी-कभी एक साधारण सी लड़की भी ऐसा काम कर जाती है जो उसे अमर बना देता है।
आज जब हम नीरजा को याद करते हैं, तो सिर्फ एक एयर होस्टेस को नहीं, बल्कि एक महान भारतीय नायिका को नमन करते हैं, जिन्होंने सिखाया कि ज़िंदगी सबसे कीमती होती है, लेकिन अगर किसी को बचाने के लिए कुर्बान कर दी जाए — तो वो सबसे महान बन जाती है।