
युद्ध और खेल, दोनों में संघर्ष होता है, रणनीति होती है, शौर्य होता है। लेकिन फर्क तब दिखता है जब कोई योद्धा जंग हारकर भी अमर हो जाता है, और कोई खिलाड़ी मैदान छोड़ते ही भुला दिया जाता है। कल जब टीम इंडिया इंग्लैंड से हार गई, तो स्कोरबोर्ड पर केवल पराजय दर्ज हुई। लेकिन उस हार में एक ऐसी अविस्मरणीय पारी भी थी, जो केवल रन नहीं, संघर्ष का इतिहास लिख गई।
रविन्द्र जडेजा, उस पारी के नायक थे। एक ऐसी जंग लड़ते हुए, जिसमें साथी एक-एक करके गिरते जा रहे थे, वह अकेले डटे रहे। क्या ये किसी युद्ध की तरह नहीं था?
जब खेल युद्ध जैसा लगता है…
खेल समीक्षक कहेंगे — “काश यशस्वी टिक जाते, काश गिल सेट हो जाते, काश नायर और रेड्डी कुछ कर जाते, काश बुमराह साथ देते…”
लेकिन इन तमाम “काश” की धुंध में जो चमकता है, वह है जडेजा का अडिग संघर्ष।
रन बने, फिर भी हार मिली। लेकिन क्या इससे उस पारी का मूल्य कम हो गया?
नहीं!
क्योंकि वह सिर्फ रन नहीं, एक भाव था — “अभी लड़ाई बाकी है।” यह वही जज्बा था जो भारत के सच्चे इतिहास से उठकर आया था, जो बताता है कि सच्चा युद्ध वही होता है जिसमें हारकर भी इंसान टूटता नहीं।
इतिहास में दर्ज हैं हज़ारों पराजयों के बावजूद उठ खड़े होने वाले योद्धा
भारत का इतिहास केवल विजयों से नहीं, संघर्षों से भरा पड़ा है। पृथ्वीराज चौहान, राणा सांगा, रानी लक्ष्मीबाई, सुभाष चंद्र बोस। वे सब लड़ते रहे, भले ही युद्ध हार गए हों, लेकिन इतिहास ने उन्हें विजेता माना।
यही अंतर है खेल और युद्ध में। खेल में रनों और विकेटों की गिनती होती है। युद्ध में साहस और संकल्प की।
शहाबुद्दीन गोरी ने भारत पर दर्जनों बार आक्रमण किया, बार-बार हारा, लेकिन हर बार फिर लौटा — और एक दिन सफल हुआ। वहीं भारत में राजपूत, जाट, गुर्जर सदियों तक लड़े। कभी जीते, कभी हारे। लेकिन उनका अस्तित्व बना रहा। यह संघर्ष ही है जिसने सभ्यताओं को जिंदा रखा।
कल की पारी — मैदान पर खेला गया एक युद्ध
जब रविन्द्र जडेजा क्रीज पर खड़े थे, तो सामने कोई आसान गेंदबाजी नहीं थी। विकेट गिरते जा रहे थे, साथी खिलाड़ी ड्रेसिंग रूम लौट चुके थे, लेकिन वह लड़ते रहे। हर बॉल को पढ़ते, हर रन के लिए लड़ते।
उनके चेहरे पर थकान थी, लेकिन आंखों में हार नहीं थी।
ये वही भाव था जो अलाउद्दीन खिलजी के खिलाफ रानी पद्मिनी के जौहर में था,
वही जो अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह की मुस्कान में था, और वही जो कल जडेजा की बल्लेबाजी में था।
क्या कहता है स्कोरबोर्ड और क्या याद रखता है इतिहास
आज जब रिकॉर्ड देखे जाएंगे, लिखा मिलेगा – भारत हारा। रेटिंग्स गिरेंगी, सोशल मीडिया पर आलोचना होगी। लेकिन क्या पांच साल बाद कोई उस स्कोर को याद रखेगा?
शायद नहीं।
पर जडेजा की वह जिद्द, वह अंत तक डटे रहने की जंग, याद रहेगी। क्योंकि इतिहास हमेशा संघर्ष को याद रखता है, असफलताओं से मिली प्रेरणा को सराहता है।
खेल में ही नहीं, जीवन में भी सबसे जरूरी है ‘लड़ते रहना’
टीम इंडिया हार गई — ये सच है। पर कल जो हुआ, वह सिर्फ एक हार नहीं थी।
वह एक संदेश था — “जो लड़ा, वही ज़िंदा रहेगा।”
जडेजा की वह पारी खेल के मैदान से उठकर हमारे जीवन के हर संघर्ष को रोशन करती है। क्योंकि हम भी तो रोज़-रोज़ की ज़िंदगी में लड़ रहे हैं, नौकरी के लिए, पहचान के लिए, सम्मान के लिए। तो अगली बार जब जिंदगी आपको क्लीन बोल्ड करे, तो जडेजा को याद कीजिए।
खेल खत्म नहीं होता जब आप हारते हैं, खेल तब खत्म होता है जब आप लड़ना छोड़ देते हैं।