
अगर बॉलीवुड के किसी कलाकार को “कीचड़ में खिलता कमल” कहा जा सकता है, तो वह हैं के.के. मेनन। अभिनय की दुनिया के इस पुष्प ने बार-बार साबित किया है कि भले ही स्क्रिप्ट कितनी ही बासी क्यों न हो, अगर पात्र का नाम ‘हिम्मत सिंह’ हो और अभिनेता केके मेनन, तो उसे जीवंत कर देने की क्षमता उनमें है।
और इस बार भी, डिज़्नी प्लस हॉटस्टार की चर्चित सीरीज़ ‘स्पेशल ऑप्स 1.5’ के बाद आई ‘स्पेशल ऑप्स 2.0’ में केके मेनन उसी करिश्माई “हिम्मत” के साथ लौटते हैं। पर इस बार सवाल ये नहीं कि वो हिम्मत दिखाते हैं या नहीं, सवाल ये है कि बाकी टीम क्या करती है?
कहानी की शुरुआत: फारूक और फिसलती हुई ज़िम्मेदारी
कहानी शुरू होती है फारूक से… एक ऐसा एजेंट जिसकी शक्ल तो जेम्स बांड जैसी लगती है, लेकिन उसकी हरकतें “एजेंट विनोद” के ख्याल से भी नीचे उतर जाती हैं। वह पकड़ा गया है, और उसे छुड़ाने के लिए हिम्मत सिंह को एक पाकिस्तानी एजेंट की फैमिली तक को बचाना पड़ता है।
उधर, बुडापेस्ट में हो रही है दूसरी लीग की बाज़ी। AI का बाप, स्काईनेट का चाचा, और शायद एलोन मस्क का inspiration वैज्ञानिक, भारी सिक्योरिटी के बीच किडनैप हो जाता है। चूंकि उसके पास भारत के डिफेंस, अकाउंट्स, पासपोर्ट, पैन, आधार सब कुछ जुड़ा है, तो देश की सांसें टंगी हैं उसके साथ।
साइड प्लॉट में फंसा इमोशनल माजरा
तीसरी ओर हिम्मत सिंह के पिता-तुल्य अंकल की कहानी चल रही है। बैंक फ्रॉड के कारण वो 1000 रुपये से ज़्यादा नहीं निकाल पा रहे और आंटी जी का ऑपरेशन टल गया है। यह सीन सीधे 2016 के नोटबंदी की याद दिलाता है, लेकिन अफसोस, न कोई ट्रांसफर ऑप्शन है न कोई इंसाफ।
बूढ़े अंकल की नाराज़गी जायज़ है, और उनका कहना है: “अगर ढोलकिया नहीं मिला, तो मैं सब उजागर कर दूँगा।”
हिम्मत सिंह के शिष्य: मॉडल्स या एजेंट्स?
अब आते हैं उस इंटेलिजेंस टीम पर, जिसे हिम्मत सिंह ने ट्रेन किया है। पर इनका काम देख ऐसा लगता है जैसे मॉडलिंग एजेंसी से उठाकर एजेंसी में भर्ती किया गया हो। बंदूकें हैं पर पहले लात-घूंसे चलते हैं। चुपके से काम करने की जगह मुँह लटकाकर इश्क फरमाया जाता है।
कहीं कोई वैज्ञानिक सामने से निकल जाता है, और एजेंट नज़रें झुकाए बैठे रहते हैं। इतना ही नहीं, एक मिशन में तो पति पीछे-पीछे विदेश आ जाता है, और बीवी एजेंट को भनक तक नहीं लगती। यही नहीं, जिस ढोलकिया को पकड़ना है, वही इनको चकमा देकर निकल जाता है… वो भी तब, जब नाव वाला किराए को लेकर बहस में उलझा देता है।
विलन या विडंबना? सुधीर अवस्थी का तमाशा
अब बात करें इस सीरीज़ के विलन सुधीर अवस्थी की, जिसे निभाया है ताहिर राज भसीन ने। एक उम्दा कलाकार, पर स्क्रिप्ट ने उन्हें लाचार बना दिया।
अवस्थी एक ऐसा सनकी अमीर है, जिसे जो पसंद आ जाए वो अपने पास रख लेता है। चाहे गाड़ी हो, संगीतकार हो या किसी की बीवी। पर क्यों? जवाब नहीं मिलता। 20 बिलियन डॉलर के लिए देश बेच देता है। क्या करेगा इतने पैसे का? जवाब फिर नहीं मिलता।
और सबसे बड़ा सवाल… एक बनारसी अवस्थी ऐसा करेगा? यकीन करना ही मुश्किल है।
ग्लैमर का ग्लोबल तड़का
सीरीज़ में हिम्मत की टीम भले ही नाकाम हो, लेकिन दुनिया की सैर पूरी हो जाती है। बुडापेस्ट, विएना, कासाब्लांका, डॉमिनिका और न जाने क्या-क्या। वाइड एंगल, ड्रोन शॉट्स और सिनेमैटिक विस्टा में कोई कसर नहीं छोड़ी गई।
AI वाली टेक्नोलॉजी को ट्रेलर में जितना दिखाया गया, सीरीज़ में उसका उतना ही अभाव रहा। पूरे शो में उसका इस्तेमाल फिर नहीं दिखता। यानी, वादा बहुत था, पर डिलीवरी कमजोर।
क्लाइमैक्स: जब चाचा चौधरी हिम्मत सिंह को पछाड़ दे
अंत इतना हँसाने वाला है कि थ्रिल की जगह चेहरे पर हँसी आ जाए। विलन अवस्थी फारूक को गोली मारने ले जाता है, लेकिन उल्टा खुद धोबी की तरह पिट जाता है। मिशन सफल घोषित हो जाता है, कंट्रोल रूम ताली बजा देता है, और ऐप का सब्सक्रिप्शन लिए हम सोचते हैं—“यही था वो थ्रिल?”
निष्कर्ष: केके मेनन चमकते हैं, बाकी सब धुंध में खो जाते हैं
‘स्पेशल ऑप्स 2.0’ में असली ऑप्स सिर्फ एक ही है, हिम्मत सिंह। केके मेनन का अभिनय आपको बाँध कर रखता है। लेकिन बाकी कास्ट, स्क्रिप्ट और लॉजिक आपको बार-बार बाहर धकेलते हैं।
अगर आप केके मेनन के फैन हैं, तो ये सीरीज़ जरूर देखिए, पर उम्मीदें ज़्यादा लेकर नहीं। ये “स्पेशल” कम और “स्पेस” ज़्यादा लगती है।