
सोचिए, अगर सचिन तेंदुलकर को करियर की शुरुआत में तेज़ गेंदबाज़ी करने को कह दिया जाता, या राहुल द्रविड़ को विकेटकीपिंग के दम पर टेस्ट टीम में जगह दी जाती तो क्या वो दिग्गज बन पाते? शायद नहीं। कुछ ऐसी ही त्रासदी से गुजर रहे हैं करुण नायर और साई सुदर्शन, जिनका चयन उस फॉर्मेट में कर दिया गया, जिसमें उन्होंने दरअसल खुद को साबित किया ही नहीं था।
यह कोई साधारण चयन भूल नहीं है, यह उस सिस्टम की कहानी है जो खिलाड़ियों की मेहनत, फॉर्म और आंकड़ों को देखकर नहीं, बल्कि जगह खाली देखकर उन्हें भरता है। नतीजा? खिलाड़ियों का आत्मविश्वास चकनाचूर, प्रदर्शन फीका और एक संभावना का अंत।
करुण नायर: एकदिवसीय क्रिकेट का तूफ़ानी बल्लेबाज़, टेस्ट में बना बली का बकरा
करुण नायर, वही खिलाड़ी जिसने विजय हजारे ट्रॉफी 2024-25 में 5 शतक लगाकर 750 से अधिक रन बनाए। एकदिवसीय फॉर्मेट में ऐसा दबदबा कि गेंदबाज़ों की नींद हराम हो जाए।
लेकिन जब उन्हें टीम इंडिया में मौका मिला, तो उन्हें उनके पसंदीदा 50 ओवर फॉर्मेट में जगह नहीं दी गई। चयनकर्ताओं ने उन्हें सीधे इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट क्रिकेट में उतार दिया। एक ऐसा फॉर्मेट, जिसमें न तो हाल की कोई तैयारी थी और न ही ज़मीन।
परिणाम क्या हुआ?
साफ है, करुण नायर फ्लॉप रहे। लेकिन क्या इसमें उनकी गलती थी? बिल्कुल नहीं। गलती उस प्रणाली की थी जो “फॉर्मेट फिट” खिलाड़ी को “फॉर्मेट मिसफिट” बना देती है।
साई सुदर्शन: T20 का हीरो, टेस्ट में ज़ीरो बनने की मजबूरी
आईपीएल 2025 के सुपरस्टार साई सुदर्शन ने 700 से अधिक रन बनाकर खुद को टी20 का उभरता सितारा साबित किया। उनका स्ट्राइक रेट, कंसिस्टेंसी और मैच फिनिशिंग एबिलिटी सभी ने उन्हें भारतीय टीम में शामिल करने को मजबूर किया।
लेकिन हुआ क्या?
टी20 में जगह नहीं थी, इसलिए उन्हें भी टेस्ट टीम में फिट कर दिया गया। जैसे किसी तेज रफ्तार कार को ऑफ-रोडिंग के लिए भेज दिया जाए।
और अंजाम?
स्वाभाविक था। वो संघर्ष करते नजर आए, रन नहीं बना सके और आलोचना का शिकार बन गए।
फॉर्मेट की अनदेखी: जब आंकड़े चीख-चीखकर कहते हैं, “गलत फॉर्मेट में मत भेजो!”
ये सिर्फ करुण और सुदर्शन की कहानी नहीं है। प्रसिद्ध कृष्णा का उदाहरण भी सामने है, जिन्हें टी20 के अच्छे प्रदर्शन के दम पर टेस्ट टीम में भेजा गया। और नतीजा? वे भी फ्लॉप रहे।
तो सवाल उठता है:
क्या चयनकर्ता फॉर्मेट के आंकड़ों को नजरअंदाज कर रहे हैं? क्या टीम में शामिल होने का पैमाना सिर्फ “कहाँ जगह है” बन गया है, न कि “कहाँ खिलाड़ी फिट है”?
रणजी में धमाका करने वाले सरफराज क्यों रह गए बाहर?
जब टेस्ट टीम की बात हो रही है, तो रणजी ट्रॉफी का जिक्र जरूरी है। इस फॉर्मेट का बादशाह रहा है सरफराज खान। वर्षों से वो घरेलू क्रिकेट में रन मशीन बना हुआ है, लेकिन उसे मौका नहीं मिला।
वजह?
शायद इसलिए क्योंकि टीम में “फॉर्मेट-फिट” खिलाड़ी के लिए नहीं, “स्थान खाली” खिलाड़ी के लिए चयन हो रहा है। एक खिलाड़ी की पहचान उसकी फॉर्मेट स्पेशलिस्ट होने में है, न कि किसी भी जगह भरने में। हर खिलाड़ी की अपनी प्रकृति होती है। कोई टी20 का तूफानी बल्लेबाज़ होता है, तो कोई टेस्ट का धैर्यवान योद्धा।
करुण नायर और साई सुदर्शन ने अपने-अपने फॉर्मेट में खुद को साबित किया। लेकिन उन्हें मौका उसी फॉर्मेट में मिलना चाहिए था। जब चयन सिर्फ उपलब्ध जगह को भरने के लिए होगा, तो न खिलाड़ियों की काबिलियत उभरेगी, न टीम का प्रदर्शन।
चयन में संवेदनशीलता होनी चाहिए, सिर्फ संभावना नहीं
करुण नायर और साई सुदर्शन के फ्लॉप होने की वजह उनके टैलेंट की कमी नहीं, बल्कि सिस्टम की नासमझी है। उन्हें अगर उसी फॉर्मेट में मौका मिलता, जिसमें वे चमक रहे थे, तो आज कहानी कुछ और होती।
टेस्ट टीम में वही खिलाड़ी चुने जाने चाहिए जो रणजी ट्रॉफी जैसे टेस्ट फॉर्मेट के प्लेटफॉर्म पर प्रदर्शन कर चुके हों। और टी20 या वनडे टीम में वही, जो IPL या विजय हजारे ट्रॉफी जैसे फॉर्मेट में शानदार रहे हों।
यह वक्त है भारतीय चयन समिति को अपने तौर-तरीकों पर पुनर्विचार करने का। क्योंकि गलती से चुना गया खिलाड़ी सिर्फ फ्लॉप नहीं होता, वो एक संभावना को भी खत्म कर देता है।