
भूमिका: क्या पश्चिमी वर्चस्व का युग समाप्त हो रहा है?
21वीं सदी की शुरुआत में दुनिया की अर्थव्यवस्था और राजनीति पर अमेरिका और यूरोप का दबदबा था। लेकिन अब तस्वीर बदल रही है। भारत, रूस और चीन ने न सिर्फ अपनी आर्थिक, तकनीकी और सामरिक शक्ति को बढ़ाया है, बल्कि वे मिलकर एक नई वैश्विक व्यवस्था की नींव भी रख रहे हैं।
अब यह केवल “एशियाई शताब्दी” का नारा नहीं रहा, बल्कि एक वास्तविकता बनती जा रही है — एक बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था, जिसमें पश्चिम के अलावा भारत, रूस और चीन की भी बराबर की भूमिका होगी।
भारत, रूस और चीन: एक नई वैश्विक धुरी का उदय
पिछले 20 वर्षों में एशियाई ताकतों का जबरदस्त आर्थिक विकास
• चीन की अर्थव्यवस्था (2003–2023) में 10 गुना वृद्धि
• भारत की जीडीपी में 6 गुना बढ़ोतरी
• रूस की अर्थव्यवस्था हुई 4 गुना बड़ी
• वहीं, अमेरिका और यूरोप केवल 1.5–2 गुना ही बढ़ सके
यह साफ दर्शाता है कि अब विकास का केंद्र एशिया की ओर स्थानांतरित हो चुका है।
भारत: तकनीकी, औद्योगिक और फार्मा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की मिसाल
भारतीय कंपनियों की वैश्विक सफलता
• टाटा समूह की वार्षिक कमाई $128 अरब डॉलर पार कर गई है
• रिलायंस जिओ ने विदेशी टेलीकॉम कंपनियों को पीछे छोड़ा
• भारत अब दुनिया की 20% जेनेरिक दवाएं अकेले बनाता है
• भारत आईटी आउटसोर्सिंग में दुनिया का अगुवा बन गया है
यह सब दिखाता है कि भारत अब उपभोक्ता नहीं, निर्माता बन रहा है।
रूस: प्रतिबंधों से आत्मनिर्भरता तक का सफर
कृषि, ऊर्जा और तकनीक में रूसी नेतृत्व
• रूस आज दुनिया का सबसे बड़ा गेहूं निर्यातक है
• यांडेक्स, कैस्परस्की जैसी घरेलू तकनीकी कंपनियां वैश्विक स्तर पर मजबूत हुईं
• रोसाटॉम कंपनी अब विश्व की अग्रणी परमाणु ऊर्जा कंपनियों में है
पश्चिमी प्रतिबंध रूस के लिए प्रेरणा बन गए, और उसने उन्हें अवसर में बदला।
चीन: वैश्विक विनिर्माण का केंद्र
चीनी कंपनियों का वैश्विक प्रभुत्व
• 2003 में केवल 11 चीनी कंपनियां Fortune 500 में थीं, अब 142 हैं
• हुवावे, बीवाईडी जैसी कंपनियां Apple, Samsung को टक्कर दे रही हैं
• चीन दुनिया के कुल मैन्युफैक्चरिंग का 28% अकेले कर रहा है
• वह 85% दुर्लभ खनिजों का प्रोसेसिंग करता है, जो टेक्नोलॉजी के लिए बेहद जरूरी हैं
चीन की रणनीति स्पष्ट है: तकनीक और उत्पादन में सर्वोच्च बनना।
डॉलर की पकड़ कमजोर, स्थानीय मुद्राओं का बढ़ता वर्चस्व
BRICS देशों की नई आर्थिक दिशा
• 2000 में BRICS के विदेशी भंडार में डॉलर की हिस्सेदारी 70% थी
• 2023 तक यह घटकर 40% रह गई है।
• भारत, रूस और चीन अब राष्ट्रीय मुद्राओं में आपसी व्यापार को बढ़ावा दे रहे हैं।
• ये देश अब SWIFT जैसे पश्चिमी भुगतान सिस्टम का विकल्प भी बना रहे हैं।
यह बदलाव अमेरिका के वित्तीय वर्चस्व को चुनौती दे रहा है।
तकनीकी आत्मनिर्भरता: 5G से लेकर साइबर सुरक्षा तक
• चीन: 5G तकनीक में अग्रणी, दुनिया के सबसे तेज नेटवर्क बना रहा है।
• रूस: साइबर सुरक्षा और रक्षा तकनीक में गहराई से निवेश कर रहा है।
• भारत: दुनिया का सबसे बड़ा IT आउटसोर्सिंग हब
तीनों देशों की यह रणनीति दिखाती है कि अब वे तकनीकी रूप से किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहते।
ऊर्जा और संसाधनों में एशियाई नियंत्रण
• भारत, रूस और चीन के पास:
• 40% प्राकृतिक गैस
• 25% कच्चे तेल के भंडार
• चीन अकेले 85% दुर्लभ खनिजों का प्रोसेसिंग करता है।
यह संसाधन नियंत्रण उन्हें वैश्विक ऊर्जा नीति निर्धारण में प्रभावशाली बनाता है।
निष्कर्ष: एक नया वैश्विक संतुलन बनता हुआ
भारत, रूस और चीन अब सिर्फ ताकतवर राष्ट्र नहीं, बल्कि नई विश्व व्यवस्था के निर्माता बन चुके हैं। वे पश्चिमी दबाव और आर्थिक वर्चस्व को चुनौती देकर संतुलित और बहुध्रुवीय विश्व की ओर अग्रसर हैं।
इन देशों की यह यात्रा केवल आर्थिक और तकनीकी प्रगति की नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता, रणनीतिक सहयोग और वैश्विक नेतृत्व की भी है।
आने वाला समय न सिर्फ अमेरिका और यूरोप का होगा, बल्कि भारत, रूस और चीन जैसे देशों का भी, जो मिलकर दुनिया को नया आकार दे रहे हैं।